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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

   !! सजा हेगै मालिन !!

सजा , सजा हेगै मालिन                                                मोर  फुलडाली  सजा ।                                                  सजा   हेगै   मालिन                                                        आजु फुलडाली सजा ।।

सिंह पे सवार मैया , अइली मोर अंगना                            खन - खन खुशी के , बाजय मोर कंगना                   

आरे बजनियाँ ,                                                            अरे आरे बजनियाँ , अंगना में ढ़ोल बजा ।।                      

   अढुलक फूल सँ , मंडप सजायब                                    जूही चमेली के लटकन लगायब                    

आ मोर सखिया , अंगना अडिपन लगा                             सजा------------------------------------        

अष्ट भुजा धारी , माँ एली दुःख हरनी                           मैया कल्याणी , एली सुख करनी          

आजु , मोर मैया के भोग लगा ।।                                    सजा------------------------------------     

चाही ने सोना , ने चाही रुपैया                                        दिल के पुकार सुनि आ मोरी मैया

"रमण" के चरण में लगा ।।                                             सजा------------------------------------        

      गीतकार - रेवती रमण झा "रमण"        

                                           


                    


                 

                       


शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

शहीदों की शहादत को अमिट सम्मान करता हूँ । रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

 


शहीदों की शहादत को
अमिट सम्मान करता हूँ ।
नमन उनकी कुर्बानी को
में सदा गुणगान करता हूँ ।।

नही तमन्ना स्वर्ग पाने की
नही कोई ताज पाने की ।
तिरंगा हो कफ़न मेरा
यही अरमान रखता हूँ ।।

शहीदों की शहादत को
अमिट सम्मान करता हूँ ।।

मिट जाऊ देश की खातिर
बचे ना एक भी शातिर ।
कुर्बान जाऊ ,इस मिट्टी पर
जीत का एलान करता हूँ ।।

शहीदों की शहादत को
अमिट सम्मान करता हूँ ।।

निशान्त झा "बटोही"

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

युवक संघ पुस्तकालय नागदह

सेवा मे,
        आदरणीय लेखक बंधु / प्रकाशक महोदय।
             अहाँ सबकेँ जानकारी देबय चाहैत छी जे युवक संघ पुस्तकालय , नागदह, मधुबनी बिहार (मिथिला)
बड्ड पुरान पुस्तकालय अछि। मुदा किछु समय सँ एकर देख रेख सही तरीका सँ नहि भ सकलै, मुदा एहि मध्य आब युवा वर्ग जागरूक भ चुकल छथि। आब एकर जीर्णोद्धार भ चुकल अछि तैं अपने समस्त लेखक/ प्रकाशक लोककनिसँ आग्रह जे एकोगोट प्रति अपन वा अन्य पुस्तक एहि पुस्तकालय मे जरूर पठाबी , 
अपने सभक
युवक संघ पुस्तकालय नागदह निमित्त..
संजय झा 'नागदह'
व्हाट्सएप्प : 8010218022
पता-
युवक संघ पुस्तकालय
ग्राम पोस्ट नागदह
जिला - मधुबनी
बिहार (मिथिला)
पिन - 847222
नोट : भ' सकए त एहि पोस्ट के किछु लोक तक भेजबा मे मदति करू।

रविवार, 12 जुलाई 2020

हे रुद्र मेरे ।। गीतकार - श्री सतीश अर्पित जी

   


क्यूं रूष्ट हो तुम हे रुद्र मेरे,
अब त्यागो रूप विकराला को...
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

धरती सारी यह त्रस्त हुई ...
चहूं ओर है पसरा भय अपार ,  नहीं सूझे कोई राह कहीं , 
मृत्यु ने मचाया हाहाकार , 
है कौन कहो शिव तुम जैसा , जो पान करे इस हाला को ...
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ..
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

माना के हमसे भूल हुई ,
फिर भी हम तुम्हरे बालक हैं ,
अब करो क्षमा हे नीलकंठ ,
एक आप हमारे पालक हैं ।
हम दीन हीन हैं चरण पड़े ...
नित जपें नाम की माला को ....
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

एक आस तुम्हीं इस सृष्टि के ,
तुम कारण अमृत वृष्टि के ....
है कौन के जिसकी शरण  गहूं...
तुम ही हो लक्ष्य,हर दृष्टि के...
"अर्पित" करता विनती हरपल 
अपने शंभू मतवाला को ....

हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....
©️✍️ सतीश अर्पित
तारा म्यूजिक
12 जुलाई 2020

रविवार, 5 जुलाई 2020

! हुई कलंकित फिर मानवता!!

राम तेरी भारत भूमि पर
फिर से सीता रोयी है ।
हुई कलंकित फिर मानवता
कब अवला चैन से सोयी है ।।

इज्जत का यहाँ कुछ मोल नही
हर पग पग पर हैवान बसा ।
रणचण्डिका बनकर जला सकू 
हर माँ के दिल ये अरमान बसा ।।

जलाकर करो राख उस पाखंडी को
अश्रु बिंदुओं को अंगार बना ।
कब तक रहोगी सहती वेदना पीड़ा को
कंगन हाथो का कटार बना ।।

किया करेंगे हम ऐसे राज को लेकर
नारी अस्तिव जहाँ खेल बना ।
हवस की बनती यहाँ निवाला नारी
नारी जीवन है अभिशाप बना ।।

रचना - 
निशान्त झा "बटोही"

बुधवार, 24 जून 2020

!! कनि सूनु ने प्रेमक गीत !!

 अहिंके याद  में डूबल
 हमर दिन राइत रहैया ।
 केहन बेमत भेलै इ मन
 कनियो ने बात बुझेया ।।

 कनि सूनु ने प्रेमक गीत
 बताह भेलै इ हम्मर चित ।
 कनि बुझु ने प्रिय सजनी
 हृदय  जे   बात   कहैया ।।

 अहिंके याद  में डूबल
 हमर दिन राइत रहैया ।।

 करा देलौं ये कुन टोना
 पकड़ बैसल छि हम कोना ।
 कहु कोना कS बिसरब ये
 निहोरा प्रीतक "बटोही" करैया ।।

 अहिंके याद  में डूबल
 हमर दिन राइत रहैया ।।

गीतकार-
निशान्त झा "बटोही"





रविवार, 14 जून 2020

!! जन्मों का ये संगम है !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! जन्मों  का  ये  संगम है !!


 मेरे  हमदम  मेरे  रहबर
 जन्मों  का  ये  संगम है ।
 नवाजूँगा   दुआओ   से
 तेरा हर गम  मेरा गम है ।।

 करू  रोशन  तेरी गलियां
 है अर्पण प्रस्फुटित कलियां ।
 है समर्पित जब मेरा हृदय
 तुझे किस बात का गम है ।।

 मेरे  हमदम  मेरे  रहबर
 जन्मों  का  ये  संगम है ।।

 मेरी धड़कन का स्वर तेरा
 तेरी मेहंदी  का  रंग मेरा ।
 जो टूटे  ना  कभी  बन्धन
 वो  डोरी  प्रीत  की  हम है । ।

 मेरे  हमदम  मेरे  रहबर
 जन्मों  का  ये  संगम है ।।

 गीतकार-
 निशान्त झा "बटोही"


गुरुवार, 11 जून 2020

बसती है जो कसक इस दिल मे आखिर वो चुभन क्या है !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! अगर जीना ये तो मरना क्या है !!
    


 बसती है जो कसक इस दिल मे
 आखिर   वो   चुभन   क्या   है ।
 जी रहा हूँ मे यही सोच सोचकर
 अगर जीना ये तो मरना क्या  है ।।

 बसती है जो कसक इस दिल मे
 आखिर वो चुभन क्या  है ।।

 अब खेलती है मेरी किस्मत मुझसे
 शायद सीखा होगा ये हुनर तुझसे ।
 टूटता हूँ में हर बार जुड़ने के लिये
 समझ नही आता  माजरा क्या है ।।

 बसती है जो कसक इस दिल मे
 आखिर वो चुभन क्या है ।।

 लगता है क्यूँ डर अब हमदर्दों से
 दर्द को हो गया है प्यार परदों से ।
 किया करोगे देखकर मेरे जख्मो को
 बस इतना बताजाओ दवा क्या है ।।

बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।

रचनाकार -
निशान्त झा "बटोही"

रविवार, 31 मई 2020

!! है तुमसे जन्मों का नाता !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! है तुमसे जन्मों का नाता !!

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।
  जरा सुन लो मेरे हमदम
  धड़कन किया ये कहती है ।।

  पल पल ये दिल समझाता
  है तुमसे जन्मों का नाता ।
  तुम समझो या न समझो
  ये आँखे तुम्हारी समझती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  है कशिश तुम्हारी निगाहो में
  दिल गिरफ्तार तेरी पनाहों में ।
  हुआ असर "बटोही" पर इनका
  जो ये निगाहे सजदा करती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  गीतकार -
  निशान्त झा "बटोही"

गुरुवार, 21 मई 2020

जी ना पायेंगी प्रीत की मारी ।। गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! कहा गया वो कृष्ण मुरारी !!



पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।
तोड़के बन्धन जन्मों का
कहा गया वो कृष्ण मुरारी ।।

ऐसा निरमोही बना कन्हैया
झट से झटक गया वो बईया ।
जाकर कहदो निष्ठुर से कोई
जी ना पायेंगी प्रीत की मारी ।।

पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।।

वो ही मेरा प्राण आधार
मेरी  साँसों  का  संचार ।
राधा अधूरी बिन कान्हा
बता दो जाके तृष्णा सारी ।।

पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।।

गीतकार -
निशान्त झा "बटोही"

रविवार, 17 मई 2020

बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में

   

बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में
  दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।
आँखों मे रुके रहते है अश्क क्योकि
    मुस्कानों का मुखोटा लगाये रहता हूँ ।।

समझ गया अब दस्तूर ये जमाने का
  है ही काम इनका सब्र आजमाने का ।
 दिलो में नफरत रख खैरियत पूछते है
    बनकर हमदर्द खुशियों को फूंकते है ।।

जानकर सब पागल में बना रहता हूँ
  जलने वालो से भी सलाम रखता हूँ ।
बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में
   दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।।

कहाँ खो गयी इस भीड़ में इंसानियत
   ढूँढता हूँ तो नज़र आती है हैवानियत ।
नही शिकवा मुझे कुछ इस जमाने से
    अपने तो पता चलते ही आजमाने से ।।

 "बटोही" यही इल्तजा बार बार करता हूँ
  मत भटक हर सीतम को समझता हूँ ।
  बन  ना जाऊ  तमाशा कहि बाजार में
    दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।।

  रचनाकार -
  निशान्त झा "बटोही"

बुधवार, 13 मई 2020

!! कौआ पहिर लेने अछि पाग !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! कौआ  पहिर   लेने  अछि  पाग !!

   वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
   बना  रहल छथि  अपन  भाग ।
   हंसक    माथे     अछि     मुरेठा
   कौआ  पहिर   लेने  अछि  पाग
   
   वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
   बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।

   मठोमाठ   बनल  मिथिला  के
   ओ बनबैत छथि, आनक भाग ।
   अप्पन  कीर्ति  अइ  बड़  सुन्नर
   आनक   कीर्ति   पटुआ   साग 
    
    वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
    बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।
   
    प्रपञची  बनि   गेल  संचालक
    अलापि रहल , लक्ष्मी के राग ।
    विद्यापति बनि गेलथि खेलौना
    खेला रहल अछि कुटिले काग 
   
    वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
    बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।

    गीतकार-
    निशान्त झा "बटोही"

सोमवार, 11 मई 2020

कोरोना के संकट काल में जहाँ एक तरफ तो सरकार, अन्य संगठनों, व्यक्तियों द्वारा निःशुल्क वितरित किये जाने वाले राशन को कुछ लोग आवश्यकता से अधिक लेकर रखने का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजस्थान के जालौर और सिरोही जिलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों ने यह कहकर वह राशन नहीं लिया कि मुफ्त में नहीं चाहिए।उन महान विभूतियों के चरणों में समर्पित मेरी यह कविता आपके सामने है--
आज त्रस्त समस्त भूमंडल, कोरोना की घातों से,
निर्जन से क्यों डगर-नगर सब,दिवस पूछता रातों से।
रोज़गार व्यापार ध्वस्त सब,तंगी है बाज़ारों में,
मानवता की सेवा के हित, होड़ लगी सरकारों में।
नायक के पग पर पग रखकर, सेना चलती वीरों की,
न्यूनाधिक सहयोग सभी का, आहुति है अमीरों की।
एक तरफ तो मारामारी, राशन लेने वालों की,
मयखानों में पंक्ति बद्ध हो,भीड़ लगाने वालों की।
और दूसरी ओर प्रशासन, देने दर पर खड़ा रहा,
बिना श्रम किये नहीं चाहिए, निर्धन निर्भय अड़ा रहा।
भूखे बच्चे रहे बिलखते, माँ का बहलाना देखो,
मर जाएँ पर मुफ्त न लेंगे,दिल का दहलाना देखो।
वन में तृण आहार बनाकर, आन निभाने वाले हैं,
हम अनुयायी हैं राणा के,जौहर के व्रत पाले हैं।
धन्य धरा यह राजस्थानी,भूमि उन प्रणवीरों की,
आओ भाल सजाएँ इसको,जननी है रणधीरों की।
        जगवीर शर्मा
 कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ.प्र.
मोबा. 9354498927

रविवार, 10 मई 2020

!! है तुमसे जन्मों का नाता !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

 !! है तुमसे जन्मों का नाता !!
   


  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।
  जरा सुन लो मेरे हमदम
  धड़कन किया ये कहती है ।।

  पल पल ये दिल समझाता
  है तुमसे जन्मों का नाता ।
  तुम समझो या न समझो
  ये आँखे तुम्हारी समझती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  है कशिश तुम्हारी निगाहो में
  दिल गिरफ्तार तेरी पनाहों में ।
  हुआ असर "बटोही" पर इनका
  जो ये निगाहे सजदा करती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  गीतकार -
  निशान्त झा "बटोही"



शनिवार, 9 मई 2020

!!मातृ दिवस !! रचयिता - जगवीर शर्मा

                       !!मातृ दिवस !!
                        


पढ़ - लिख कर रोजगार की ललक ही तो,
तात भ्रात भगिनी से दूर कर देती है ।
कैसी रीत है भला ये पगले जमाने की जो ,
सुत को ही मात से अलग कर देती है ।
उस वक़्त मै भी नही जान पाया था कि धन,
पद की ये लालसा ही मति हर लेती है ।
माँ के पास था तो माँ का मोल नही जान पाया
माँ गयी तो लगा जैसे सूख गयी खेती है ।।

रचयिता -
जगवीर शर्मा




गुरुवार, 7 मई 2020

बम भोले मेरे नाथ खरगेश्वर !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! बम भोले मेरे नाथ खरगेश्वर !!

  बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
  तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।
  त्रिनेत्र जब खोले त्रिलोकी
  हिले धरा और डोले अम्बर ।।

 डाल दृष्टि करुणा कृपा की
 कुसमौल को धन्य किया ।
 चरण कमल पद चिन्हों से
 ये धरा को पावन स्वर्ग किया ।।

 जगदव्यापी त्रिलोकेश दिगम्बर
 बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
 तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।।

जो भी आया दर पर भोले
 बिन मांगे सब कुछ पाया है ।
 करो निहाल हे कृपा सिन्धु
 "बटोही" जग से ठुकराया है ।।

 शितिकण्ठ शिवाप्रिय गंगाधर
 बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
 तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।।

गीतकार -
निशान्त झा "बटोही"

बुधवार, 6 मई 2020

हम देश हिन्दुस्तान को दुल्हन बनायेंगे ।। रचनाकार - श्री बद्रीनाथ राय जी

           !! चाँदनी शरमयेगी ऐसा सजायेंगे !!
                 


   हम देश हिन्दुस्तान को दुल्हन बनायेंगे ।
   चाँदनी शरमयेगी ऐसा सजायेंगे ।।
   घर - घर मे फरिस्ता यहाँ हर लोग देवता ।
   रग - रग में भरे हों सभी में राष्ट्र एकता ।।
   आँसू न बहे दुध की दरिया बहायेंगे 
   चाँदनी शरमयेगी..............

   सीमा हो सुरक्षित न हों सैनिक की सहादत
   मंदिर नही मस्जिद नही हो राष्ट्र इबादत
   ऐसी नई तकनीकि हम इजाद करेंगे
   चाँदनी शरमयेगी..............

   भूखा नही नंगा कोई तकदीर का मारा
    हर हाथ हो सक्षम नही लाचार बेचारा
    सुख शांति शौर्य प्रेम का दीपक जलायेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    फल श्रेष्ठ सभी हो ऐसा उपवन हो हमारा
    जन्नत से भी सुन्दर हो प्यारा देश हमारा
    ज्ञानी - गुणी निस्वार्थ को नायक बनायेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    तुफान से टकराने की क्षमता हो हमारी
    भगवान के भरोसे न फसले हो हमारी
    मौसम की गुलामी से हम आजाद करेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    सैनिक श्रमिक कृषक का हम सम्मान करेंगे
    निर्भय हो योगी - यति यहाँ ध्यान करेंगे
    अमृत का कलश शौर्य से हम प्राप्त करेंगे
    राष्ट्र के रक्षक सदा ही पान करेंगे ।।
    चाँदनी शरमयेगी..............

    रचनाकार -
    श्री बद्रीनाथ राय
    ग्राम पोस्ट - करमौली
    जिला - मधुबनी बिहार
    फोन नo - 6205190859 / 9717815472

रविवार, 3 मई 2020

!! हर साँस तड़प रही है !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! हर साँस तड़प रही है !!

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।
 छाया कैसा विरह का पहरा
 मेरी हर साँस तड़प रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 बुझ गये खुशियों के दिये

 गमे उल्फत सुलग रही है ।
 लुटकर करार मेरे दिल का
 मेरे अफसाने सुन रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 मेरे अश्को की दरिया में

 नाव उनकी चल रही है ।
 बनकर वो इतनी निष्ठुर
"सुशील बटोही" पे हस रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 गीतकार-

 निशान्त झा "बटोही"

दर्द बढ़ता हैं तो लिख लेता हूँ मैं !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! भीग लेता हूँ मै !!
     


अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं
दर्द बढ़ता हैं तो लिख लेता हूँ मैं ।
छोड़ो क्या करोगे पोछकर आँसू
पड़ चुकी आदत पोछ लेता हूँ मैं ।।
                             छोड़ो क्या करोगे ........

ना दिखाओ कोई हमदर्दी मुझको
ये दर्द समझ लेंगे बेदर्दी मुझको ।
अपने गमो को सम्भाल लेता हूँ मैं
अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं ।।
                               छोड़ो क्या करोगे ........

 मेंरा उजड़ा जीवन वो बसायेगा
"बटोही" का जनाजा जो उठायेगा ।
 हँसी का मुखोटा डाल लेता हूँ मैं
 अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं ।।
                                  छोड़ो क्या करोगे ........

 रचना -
 निशान्त झा "बटोही"
            हास्य दिवस की शुभकामनाएं
                           'कुछ'
एक बार हम बाजार गए, दाढ़ी बनवानी थी
क्योंकि शाम को शादी में दावत खानी थी
हमने हज्जाम बबलू से पूछा कि क्या लोगे
बोला बस कुछ ही जो आप दोगे
दाढ़ी बनी तो तीस रुपये देकर हमने कहा लीजिए
बोला भाईसाहब हमें तो 'कुछ' ही दीजिए
खैर हमने भी मारा दाँव और उसे समझाया
कुछ तो घर पर है, ये कह उसे शाम को घर बुलाया
सारी योजना मनु की मम्मी को बतलायी
एक गिलास पानी मे थोड़ा दूध और एक मरी मख्खी डलवायी
शाम को बबलू आया और बोला कि हमें 'कुछ' दीजिए
हमने कहा ले जाना पहले दूध तो पीजिए
उसने जैसे ही घूँट भरी तो मख्खी ऊपर आयी
वह तपाक से बोला,इसमें तो कुछ है भाई
हमने कहा ठीक है 'कुछ' निकालो और ले जाओ
आगे से अपुन की दाढ़ी का यही रहेगा भाव
      जगवीर शर्मा
कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ. प्र.।
मोबा.8307746794,9354498927

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

   सुनहरी सपना
इस दीवाली पर घरवाली,
बोली कि शर्मा जी।
और चाहे कुछ न लाना,
पर बस इतना करना जी।
सोने का गलहार मुझे,
इक अच्छा सा घड़वाना।
कंगन थोड़े वज़नी से हों,
नथनी में हीरे जड़वाना।
हम भी तो पूरे हीरो थे,
झट सुनार को फोन लगाया।
आँखें चकाचौंध हो जाएँ,
गहनों का वो सैट मंगाया।
सज-धज कर ज्यों ही मिश्राणी,
सम्मुख आकर बोली सजना।
गिरे बैड़ से नीचे एकदम,
टूट गया वो सुनहरी सपना।।
                जगवीर शर्मा
         कवि एवं मंच संचालक
         मोदीनगर, गाज़ियाबाद,
         उत्तर प्रदेश।
         मोबा.8307746794 (w)
                 9354498927
      


शनिवार, 18 अप्रैल 2020

तेरी यादों का सबब है ऐसा .. रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! तेरी यादों का सबब !!


 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।
 रहती मुस्कान लवो पे बेशक
 रहता खुशियों से,ये डर कैसा ।।

 क्या करूँ में ये शिकवा तुझसे
 जब खुदा ही,रूठ गया मुझसे ।
 मत पोछो इन नम आंखों को
 अश्क लगता है, हमसफ़र जैसा ।।

 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।।

 चुभे जो काँटे गमो की राहो में
 मिलेगा सुकून, मौत की बांहों में ।
 ज़िन्दगी जख्म की मिसाल बनी
 "बटोही" ये तमाशा, तू बना कैसा ।।

 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।।

 रचना -
 निशान्त झा "बटोही"




शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

अपने पहलू में मुझको जगह दिजिये ।। रचनाकार - मिथिलेश राय

                    !! गज़ल !!

_______
ना दवा दिजिये ना दुआ किजिये
अपने पहलू में मुझको जगह दिजिये

1•
ये उलझा सा पल जाने क्या होगा कल
थी धुंधली सी यादें और सहमें थे हम
दुर जाने से अक्सर मैं डरता रहा
अपनें दिल के क़रीब मुझको रख लिजिये

2•
दीप बनकर तेरे दिल में जलता रहा
तेरी अंधेरी दुनिया को रौशन किया
तेज आंधी आयी दिया बुझ सा गया
अब आप ही ये दिया जला दीजिये

3•
मौत चौखट पे मेरे शोर करता रहा
दिल से बाहर ना आने का जिद्द था मेरा
अब आप ही सनम फैसला लिजिये
अपने दिल से मुझे आप जुदा किजिये

© ✍..मिथिलेश राय
    धमौरा-०१-०७-२०१९

प्रस्तुतकर्ता-
निशान्त झा"बटोही"

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कैसी मनहूस घड़ी में आये राज बसन्त ।। रचनाकार - हृदयनारायण झा जी





ये कैसी मनहूस घड़ी में आये राज बसन्त I
लॉक डाउन में किसलय की भी शोभा नहीं बसन्त II
लॉक डाउन ले आया आफत छाया घोर अंधेरा I
दिन में भी दिखते हैं तारे कोई नहीं सहारा I
यहॉ कोरोना के दहशत में नहीं कामिनी कन्त II ये ...
आगे कुआँ पीछे खाई बीच जान जाने को आयी I
छूटी रोजी भूखे प्यासे हाल बेहाल में हुई पिटाई I
निर्मम क्रूर बनी शासन का यहाँ न दिखता अंत II ये....
आगे कुआँ कोरोना का पीछे लॉक डाउन की खाई I
बदहवास बेहोश करोड़ों जनता की चिंता गहराई I
बदनसीब उन सब जीवन का निकट दिख रहा अंत II ये..
देख दुर्दशा इस भारत की नहीं कूकती कोयल I
भौरों का गुंजार बंद पंछी के कलरव ओझल I
प्रलय मचा रखा है यहाँ कोरोना का विषदन्त II ये...
कई कामिनी कन्त वियोग में रोती हैं दिन रात यहाँ पर I
माँ की ममता कई घरों में फूट फूट रोती किस्मत पर I
अकाल काल कवलित के घर में नहीं शोक का अंत II ये...
आये तो नि:शब्द यहॉ पर अपना समय बिताना I
अपने ऋतु के वायु वनस्पतियों को भी समझाना I
कोरोना के गीत यहां पर चैती चैता नहीं बसंत II
जन जीवन के दुःख से आहत यहाँ उदास प्रकृति है I
फूलों में भी कांटो जैसी दीख रही विकृति है I
लॉक डाउन से यहॉ हुई शोभा सुषमा का अंत II
अब न कभी मसहूस घड़ी में आना राज बसन्त II

रचनाकार- 
हृदयनारायण झा जी

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कोरोना लॉक डाउन में विद्यालय के उद्गार
आ जाओ शिशु औ बाल तरुण
क्यों मुझे अकेला छोड़ दिया।
विपदा के समय अकेला हूँ
क्यों मुझसे नाता तोड़ दिया।।
चलना बोलना सीखते ही
माँ बाबा दूर किये तुमको।
शिक्षा संस्कार सिखाने को
रोतों को सौंप गये मुझको।
भगवन का बाल स्वरूप समझ
तुम से ये रिश्ता जोड़ लिया।।विपदा के......
नित आते फिर जाते थे तो
अगले दिवस की चाह तो थी।
मुझको लगता था तुम सबको
तनिक मेरी परवाह तो थी।
आँखों के तारे थे मेरे
अब एकदम क्यों मुख मोड़ लिया।।विपदा के......
माली काका भैयन मैया
मेरी सुध लेना भूल गए।
आचार्य प्रधानाचार्य जी व
दीदी भी मुझसे दूर गए।
मेरे कमरे आँगन बगिया
सबने मुस्काना छोड़ दिया।।विपदा के.....
मुझको लगा कुछ बात तो है
मेरे संग कुछ घात तो है।
फिर मुझको एकदम भान हुआ
बड़ा कोई संताप तो है।
सपने में राम-सिया बोले
कि चीन कोरोना फोड़ दिया।।विपदा के....
ऐ मेरे प्यारों बात सुनो
मैं तुम पर जान लुटाता हूँ।
सूने आँगन औ झूलों में 
आभास तुम्हारा पाता हूँ।
तुम स्वस्थ रहो और मस्त रहो
लो मैंने रोना छोड़ दिया।।
                    जगवीर शर्मा
             कवि एवं मंच संचालक
             मोदीनगर, गाज़ियाबाद।
            मोबा.8307746794
                   9354498927

रविवार, 22 मार्च 2020

मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता... रचना - आशीष कुमार जी ।।




आशीष कुमार की कविता
......................
मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता

मुझे बोलना नहीं आता
मुझे लिखना नहीं आता
लेकिन अगर मैं लिख पाता
तो लिखता एक कविता
हिन्दुस्तान के मुसलमान के बारे में

छोटी लकीर था
 कहते हैं कबीर था
उसकी तस्बीह में सौ दाने थे
इसके क्या माने थे ? 
दोहों में साखी था
हाथों पे राखी था
गले में ताबीज था 
बहुत ही नाचीज था



सुर में गाता था
सूरमा लगाता था
अलीगढ़ का ताला था
अमन का रखवाला था
पंचरवाला था
गोश्त काटता था
दोस्त बांटता था 
यार अबे ...कहता था
अलिफ बे... पढ़ता था 
कितना अजीब था
कि ....उसमें तहजीब था

वो भी कितना ?
इतना कि
अदब को अदब सीखनी होती है तो वो लखनऊ चली आती है
और 
 नफरत को नफरत सीखनी होती है तो वो गुजरात चली जाती है

सच को सच की तरह कहा जाए तो
 संविधान की प्रस्तावना लिखने वालों में उनका नाम नहीं है
फिर भी न जाने क्यों
उन्होंने अपने हिस्से की धूप मांगी
तो संविधान की प्रस्तावना को सर से लगाया


उन्होंने ट्रेनें नहीं रोकी
जंतर मंतर ... रामलीला मैदान नहीं गए 
वो जहां रहते थे, सहते थे, बसते थे 
उसी बस्ती में, उन्होंने उठा लिया तिरंगा 






मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता
लेकिन  अगर मैं लिख पाता 
तो आपको बताता 
कि आटे सने हाथों में
 मेंहदी लगे हाथों में 
ओट्स वाले हाथों में
 नोट्स वाले हाथों में 
जब तिरंगा आता है 
तो कितने शान से लहराता है
वो दृश्य बड़ा पावन था
आंखों में सावन था
दो हजार-बीस में 1857 था

बुरके वाली औरतें... हिजाब वाली औरतें
जींस वाली लड़कियां, फ्रॉक वाली बच्चियां
वो दादियां,वो नानियां 
 वो सब बागी थीं 
और उनके 
कौम वाले गीत से
रोम-रोम संगीत से
राग बन गया
.वो जगह.... बाग बन गया  


तवे पर रोटियां
घरों में बेटियां 
छोड़ कर 
वो बनाने निकलीं देश 
उनका दर्द कितनों ने जाना क्या मालूम 
लेकिन अगर मैं लिख पाता तो लिखता 
घर ही नहीं देश भी बनता है औरतों से




 दर्द बड़ा गहरा था
 रोने पे पहरा था 
आंसू निकलते थे 
जज्बात निगलते थे
सोने सा मन 
क्षण-क्षण
कण-कण  
जन-गण-मन

मुझे बोलना नहीं आता, मुझे लिखना नहीं आता
लेकिन अगर मैं लिख पाता तो रूह से निकलने वाली उस कराह के बारे में लिखता
 जो तब निकलती है जब लाखों लोगों की इज्जत पांच सौ पर नीलाम होती है
अगर सच बोलना इतना बड़ा गुनाह न होता 
तो मैं जरूर कहता 




कि 
ये महज विरोध नहीं विद्रोह था 
आजादी के बाद 
सत्य और अहिंसा के साथ  पहला आंदोलन
प्रस्तावना के साथ पहला आंदोलन
तिरंगे के साथ पहला आंदोलन
महिलाओं की अगुवाई में पहला आंदोलन 

आपने इतिहास को किताबों में पढ़ा होगा
अब आप इतिहास के बनने के गवाह हैं 
1857 से दो हजार 20 तक
ईस्ट इंडिया कंपनी से वेस्ट इंडिया कंपनी तक 
वो खड़ी , वो अड़ी, वो लड़ीं वो लड़ती रहीं
किसके लिए 
संविधान के लिए
लोकतंत्र में लोक के सम्मान के लिए
उन्होंने 
मान दिया
हमारे संविधान को
हमारे तिरंगे को
हमारी औरतों को

बापू के इस देश में 
पहली बार एक आंदोलन चला 
और मैं लिख पाता तो आपको बताता 
कि इस आंदोलन में था
अहिंसा और सत्याग्रह का आकर्षण 
एक विराट सम्मोहन 
कुछ इस तरह जैसे
अगर बापू होते, और वो आंदोलन करते तो ये था उस जैसा आंदोलन 

मुझे बोलना नहीं आता
लिखना नहीं आता
लेकिन वो दर्द जो हिन्दुस्तान के मुसलमान का है
वो हिन्दुस्तान में हर इनसान का है

अगर मैं कह पाता तो बताता 

कि तुम्हारा ये दर्द
मुझे जीने नहीं देता
तुम्हारा ये दर्द
मुझे मरने नहीं देता
तुम्हारा ये दर्द मेरा भी दर्द है
क्योंकि ये हममें से एक का है
इसलिए ये हर एक का है
और जो एक का नहीं, वो शेष का नहीं
जो एक का नहीं, वो देश का नहीं

अगर मैं लिख पाता तो लिखता 
देशभक्ति अगर तुम्हारा कोई नाम होता तो शायद मुसलमान होता
मैं शर्मिंदा हूं
बहुत शर्मिंदा 
कि मुझे बोलना नहीं आता , मुझे लिखना नहीं आता 
.......................................................

गुरुवार, 19 मार्च 2020

बुधवार, 18 मार्च 2020

जिंदगी जीना आसान नहीं. || रचनाकार - आशुतोष "कन्हैया"



जिंदगी जीना आसान नहीं
अब औऱ कोई प्रमाण नहीं
लड़ते-झगड़ते वो मंजर देखा
अपनों को भोंकते ख़ंजर देखा

कहीं ज़मीन तो कही ज़मीर की
कहीं उल्फ़त तो कहीं तमीज़ की
हर शख़्स खड़ा चौराहे पर
तलवार की धार पर
इस फ़िराक में क़ी वार कर
वहशियों को तैयार देखा।

अतातयीयो की फ़ौज में
सत्ता के मौज में
दरिन्दों के दौर में
वो कसमसाती जिंदगी
चीत्कारती,कराहती
मरता आदमी 
हैवानियत की हद तक
वो बिखरता संसार देखा।

     कन्हैया झा आशुतोष

सोमवार, 9 मार्च 2020

गीत (चाची की होली)

होली में मारे कुलाची।
कमाल कर दीनो रे चाची।।
सब सखियन के संग में आयी।
रंग लगाए और देत है गारी।
दे दे ठुमका नाची।।
कमाल कर दीनो रे चाची...
होली का हुडदंग भयो है।
चाचा हमरे भंग पियो है।
चाची ने पी लई काची।।
कमाल कर दीनो रे चाची....
चाचा बोले मार पिचकारी।
झट सै वा नै सिर मैं मारी।
गुल्लड़ ह्वै गयो साँची।।
कमाल कर दीनो रे चाची...
                  जगवीर शर्मा
             कवि एवं मंच संचालक
                    मोदीनगर
            मोबा.8307746794
                    9354498927

!! मन मे उमंग भरे !! रचनाकार - जगवीर शर्मा

!! मन मे उमंग भरे !!




जीवन मे रंग भरे मन मे उमंग भरे
पुष्प की तरह सदा यूँ ही मुस्कुराइए।

रुके नहीं कोई काम हरि को करो प्रणाम,

भाग्य वाली तस्वीर कर्म से सजाइये।

कभी न अहं आये दुखी पे रहम आये,

मान पूर्वजों का हमेशा तुम बढाइये।

शुभकामनाएँ होली की हैं आपको जी,

प्यार से गुलाल लाल गाल पे लगाइये।।

             जगवीर शर्मा

             कवि एवं मंच संचालक

                 मोदीनगर

              मो.9354498927

                

                

बुधवार, 4 मार्च 2020

होली गीत

                                      होली गीत                                          आयी फागुन मस्त बहार
उड़े रंगों की फुहार
साजन रंग डारो
मोहे रंग डारो
सखियाँ ताने मार रहीं हैं
कैसे मैं समझाऊँ।
आ जाओगे संग मेरे तो
सबको मैं बतलाऊँ।
गाऊँ मैं भी गीत मल्हार
गूंजे पायल की झंकार
साजन रंग डारो।।
बाल युवा और वृद्ध आज
सब पस्त हुए होली में।
सजनी आगे साजन देखो
मस्त हुए होली में।
अब तो आ जाओ भरतार
अँखियाँ राहें रहीं निहार
साजन रंग डारो।।
लाल गुलाल मलो गालन पै
भर लाओ पिचकारी।
ऐसो रंग डालना साजन
भीजि जाए जो सारी।
आओ भूल जाएं तकरार
कर लें इक दूजे से प्यार
साजन रंग डारो।।
                      जगवीर शर्मा
               कवि एवं मंच संचालक
                    मोदीनगर
               मो.8307746794