कोरोना के संकट काल में जहाँ एक तरफ तो सरकार, अन्य संगठनों, व्यक्तियों द्वारा निःशुल्क वितरित किये जाने वाले राशन को कुछ लोग आवश्यकता से अधिक लेकर रखने का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजस्थान के जालौर और सिरोही जिलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों ने यह कहकर वह राशन नहीं लिया कि मुफ्त में नहीं चाहिए।उन महान विभूतियों के चरणों में समर्पित मेरी यह कविता आपके सामने है--
आज त्रस्त समस्त भूमंडल, कोरोना की घातों से,
निर्जन से क्यों डगर-नगर सब,दिवस पूछता रातों से।
रोज़गार व्यापार ध्वस्त सब,तंगी है बाज़ारों में,
मानवता की सेवा के हित, होड़ लगी सरकारों में।
नायक के पग पर पग रखकर, सेना चलती वीरों की,
न्यूनाधिक सहयोग सभी का, आहुति है अमीरों की।
एक तरफ तो मारामारी, राशन लेने वालों की,
मयखानों में पंक्ति बद्ध हो,भीड़ लगाने वालों की।
और दूसरी ओर प्रशासन, देने दर पर खड़ा रहा,
बिना श्रम किये नहीं चाहिए, निर्धन निर्भय अड़ा रहा।
भूखे बच्चे रहे बिलखते, माँ का बहलाना देखो,
मर जाएँ पर मुफ्त न लेंगे,दिल का दहलाना देखो।
वन में तृण आहार बनाकर, आन निभाने वाले हैं,
हम अनुयायी हैं राणा के,जौहर के व्रत पाले हैं।
धन्य धरा यह राजस्थानी,भूमि उन प्रणवीरों की,
आओ भाल सजाएँ इसको,जननी है रणधीरों की।
जगवीर शर्मा
कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ.प्र.
मोबा. 9354498927
आज त्रस्त समस्त भूमंडल, कोरोना की घातों से,
निर्जन से क्यों डगर-नगर सब,दिवस पूछता रातों से।
रोज़गार व्यापार ध्वस्त सब,तंगी है बाज़ारों में,
मानवता की सेवा के हित, होड़ लगी सरकारों में।
नायक के पग पर पग रखकर, सेना चलती वीरों की,
न्यूनाधिक सहयोग सभी का, आहुति है अमीरों की।
एक तरफ तो मारामारी, राशन लेने वालों की,
मयखानों में पंक्ति बद्ध हो,भीड़ लगाने वालों की।
और दूसरी ओर प्रशासन, देने दर पर खड़ा रहा,
बिना श्रम किये नहीं चाहिए, निर्धन निर्भय अड़ा रहा।
भूखे बच्चे रहे बिलखते, माँ का बहलाना देखो,
मर जाएँ पर मुफ्त न लेंगे,दिल का दहलाना देखो।
वन में तृण आहार बनाकर, आन निभाने वाले हैं,
हम अनुयायी हैं राणा के,जौहर के व्रत पाले हैं।
धन्य धरा यह राजस्थानी,भूमि उन प्रणवीरों की,
आओ भाल सजाएँ इसको,जननी है रणधीरों की।
जगवीर शर्मा
कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ.प्र.
मोबा. 9354498927
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