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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

!! छण भंगुर को आये जीवन मे !! रचनाकार - निशान्त झा "रमण"


!! छण  भंगुर  को  आये  जीवन  मे !!


   

    छण  भंगुर  को  आये  जीवन  मे
    सात  जन्म  की  कसमें  खाकर ।
    प्रणय  सूत्र  का  बन्धन अश्को से
    बांध  गये जीवन मे तुम आकर ।।
                                    सात  जन्म  की ......

    हमसफ़र बने तुम जब मेरी राहो के
    फिर कियु तनहा हूँ में तुमको पाकर ।
    ना बिसरे इस दिल से ये याद तुम्हारी
    अब कहा बिसरू में तुमको जाकर ।।
                                    सात  जन्म  की ......

    विरह में जलता मुझको छोड़ गये यू
    जरा देख तो लो तुम मुझको आकर ।
    तुम बिन जीना तो फिर जीवन किया
    चलती नही ये साँसे अब मेरी चाहकर ।।
                                       सात  जन्म  की ......

   रचना -
   निशान्त झा

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

!! विश्वाश आज भी है !! रचनाकार - निशान्त झा "रमण"




 

 !! विश्वाश आज भी है !!

   आपकी आभा से जगमगाता
   ये गुलशन आज भी है ।
   आपकी निष्ठा कर्तव्य से रोशन
   ये गुलज़ार आज भी है ।।
   आपकी आभा से जगमगाता
   ये गुलशन आज भी है ।

   बढाये थे परहित में जो कदम
   ये पदचिन्ह आज भी है ।
   हृदय समर्पित था जनहित में
   ये लक्ष्य आज भी है ।।
   आपकी आभा से जगमगाता
   ये गुलशन आज भी है ।

   सीखा गये परोपकार में जीना
   ये हौसला आज भी है ।
   ना हुआ ना होगा आपके जैसा
   ये विश्वाश आज भी है ।।
   आपकी आभा से जगमगाता
   ये गुलशन आज भी है ।

   रचना -
   निशान्त झा "रमण"


रविवार, 9 फ़रवरी 2020

!! अल्हड़ था मैं !! रचनाकार - मिथिलेश राय



         !! अल्हड़ था मैं !!

       
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मेरे कामयाबी से कोई जलता रहा"
और मै सरफिरा !
यूँ ही बेबाक़ आगे बढ़ता रहा,
ना तुफानों का परवाह किया !
ना ही किसी रास्तों में परे काँटों का,
बस यूँ ही बेबाक आगे बढ़ता रहा !

अल्हड़ था मैं,
गाँव की मिट्टी में जो पला बढ़ा था !
बहुत ही कम उम्र मे,
हर मुश्किलों से जो लड़ा था !
ना जानें कैसे-कैसे दर्दों को सहा था,
कभी-कभी तो मैं,
आवारा भी कहा गया था !
मैं तब भी हिम्मत नहीं हारा था,
हाँ थोड़ा सा लड़खड़ा जरूर गया था !
पर गिरा नहीं था,

बस अपनें ही जिद्द पे अड़ा था  !
ना समंदर की लहरों का डर,
और ना ही उन लहरों में डुबने का भय था  !
बस मन में ठाने मंजिल तक पहुंचनें का जो लक्ष्य था,
उसी लक्ष्य को पानें की चाह में"
मदमस्त ब्यार की तरह आगे बढ़ता जा रहा था !
क्या कहूँ बहुत ही कठिन डगर था,
पर जैसा भी था। ये सफ़र बहुत ही हसीन था  !

© ✍..मिथिलेश राय
    धमौरा-05-02-2020

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

कहा खो गयी है लवो से ये खुशिया || रचनाकार - निशान्त झा "रमण"









     बना दिल आवारा !!
 
  कहा खो गयी है लवो से ये खुशिया
  फिरूँ ढूंढता यूँ ,दर बदर मारा मारा ।
  कोई मुझको उनका पता तो बतादो
  तसब्बुर में जिनके ,बना दिल आवारा ।।
                          फिरूँ ढूंढता यूँ .........

  चाहत में जिनकी ये लुटा बैठे हस्ती
  हँसते है वो ही घर ,फूँक कर हमारा ।
  उन्हीं ने बनाया फिर,मुझको बिगाड़ा
  यूँ खुदा मानकर ,था जिनको सँवारा ।।
                         फिरूँ ढूंढता यूँ .........

  चलती है सांसे पर ज़िन्दगी कहा है
  फिरूँ जीवन मे गमो से हारा हारा ।
  मेरी रूह को सुकून  कोई दिलादो
  होगा एहसान इस दिल पर तुम्हारा ।।
                        फिरूँ ढूंढता यूँ .........

  गीतकार-
  निशान्त झा "रमण"

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

विश्वासघात !! रचनाकार - मिथिलेश राय ।।





!! विश्वासघात !!
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ज़रा सोचो,
ओ मंज़र कैसा रहा होगा ?
जिसके पीठ में अपनों ने ही घोंपा ख़ंजर होगा !
ओ कितना बेरहम कोइ अपना हमदम होगा,
जिसने अपनों के ही
पीठ में घोंपा ख़ंजर होगा !

हवा का रूख भी,
ना जाने किस तरफ़ बहा होगा ?
ऐसा लगता है की ?
समन्दर नें भी अपने लहरों में कितने को डुबोया होगा,
ज़रा सोचो,ओ मंज़र कैसा रहा होगा ?
जब अपनों ने ही
अपनों के पीठ में घोंपा ख़ंजर होगा !

ना जाने उसने अपनों के लिये कितने ख़्वाब संजोया होगा,
कहीं ऐसा तो नहीं....की ?
उसी नें उनके साथ ये विश्वासघात किया होगा ?
लगता है!
कई बार उसने,ये प्रयास किया होगा,
तब जाकर कहीं,उसने उनके पीठ में घोंपा ख़ंजर होगा !
ज़रा सोचो,ये मंज़र कैसा रहा होगा ?
जब अपनों ने ही
अपनों के पीठ में घोंपा ख़ंजर होगा !

मौत भी आज अपने क़िस्मत पर आँसु बहा रहा होगा,
जब ओ मौत से गले लगा कर ये क़िस्सा सुना रहा होगा !
ज़रा सोचो ओ मंज़र कैसा रहा होगा ?
जब अपनों ने ही अपनों के पीठ में घोंपा ख़ंजर होगा !

© ✍..मिथिलेश राय
 धमौरा:-०९-०३-२०१९