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सोमवार, 27 दिसंबर 2021

मैं जी रहा हु गुमनाम ✍️गगन कुमार✍️

 


मैं जी रहा हु गुमनाम , ये मेरी तक़दीर बन गया , जिस दिन मिला मुझे प्रभु , मैं एक नामी तस्वीर बन गया , हो प्रभु का हाथ सर पर , तो कोई मेरी पहचान मिटा नहीं सकता , जिस दिन से सोचा ग़रीबों के लिए कुछ करना, मुझे कोई राह से भटका नहीं सकता , अपने लिए तो सभी जीते है , पर में जीता हु दुखी लोगों के लिए , मुझे कोई रोक के तो दिखाए ,मुझे मेरी मंज़िल को पाने में कोई हिला नहीं सकता , कर्म तो सभी करते है हर दिन , पर में कर्मों का विधाता नहीं, रही आख़री साँस भी , तो यही कहूँगा मुझे जीना आता ही नहीं, पता नहीं मेरी इस जगत में मेरी कोई पहचान है, पर जीते जी सबकी मदद करूँगा , यही मेरा ईमान है 🙏🙏🙏

बुधवार, 22 दिसंबर 2021

छल सपना सपने रहि गेल।

 


अर्थकहीन मनोरथ सभटा,

छल सपना सपने रहि गेल।

देखब कहिया दिन सुदिन हम,

दग्ध हृदय जरिते रहि गेल।।

छल द्वेष दंभसँ दूषित समाज,

उपहासे मात्र करइए।

मन मारि अपमान सहै छी,

झर्झर नोर बहइए।।

हम समाजक व्यंगात्मक ,

सम्बोधन सभ स्वीकार करै छी।

केओ बुझइए पिलिया कुकुड़,

तेकरो अंगीकार करै छी।।

छी समाजमे गौण-मौन हम,

गुजर करै छी खखरीसँ।

गाँधी वस्त्र बुरिबक बुझइए,

डर लगइए बकरीसँ।।

पौरुष-पैर पाँखि अछि काटल,

हाथ हथौड़ीसँ थुरल।

दगाबाज सभ दर्दे दइए,

स्वाभिमान सेहो चुरल।।

वस्त्रहीन छी देह उघार अछि,

सच पूछी दरकारो नञि अछि।

मंङलासँ के देत दयालु ,

हमरा लेल सरकारो नञि अछि।।

शब्दक हम छी कृषक अनारी,

नञि उपजइए मरुवा धान।

छी विचारमे बारूद भरने,

सुनक लेल नञि सक्षम कान।।

नञि पौरूष नञि पाग माथ मे,

छी समाज मे स्तरहीन।

हँसी हमर अछि बन्हकी लागल,

लए छी साँस बसातो कीन।।

भूखल नञि हम धन सम्मानक,

भूखल छी हम स्नेहक।

पलटि क पबिरइ छी हम गुदरी,

फाटल अपने देहक।।

जीवन भरि पतझड़ मे रहलहुँ,

नञि वसन्तकेर दर्शन भेल।

धरती आ आकाश सुखल अछि,

मधुमासो सुखले रहि गेल।।

जेबी मे अछि स्वर्ण निष्क नञि,

झोरी मे अपमान भरल अछि।

ठार भेल हम कनगी पर छी,

पैर मे कंकड़ काँट गरल अछि।।

होश -हबास नञि छी हताश हम,

लोक जजातक खअर बुझइए।

स्वार्थी सम्बन्धी सब रूसल,

किछु माङत ताँइ पर बुझइए।।

साहस संङ संकल्प जुटाक',

कोहुना जीबि रहल छी।

भवन-भूमि नञि देलनि विधाता,

फाटल सीबि रहल छी।।

सावन प्यासल भादो प्यासल,

तरसै चान इजोरिया लेल।

कृष्ण-कर्म कें व्यवसायीगण,

कृष्णपक्षसँ रखने मेल।।

चुटकी भरि इजोतक कारण,

हमर घर अन्हार रहइए।

भेटल अछि उपहार गरीबी,

जीवन हमर पहाड़ लगइए।।

अपन लहाश अपने कनहा पर ,

कोहुना उघि रहल छी।

श्मशान आब कतेक दुर छै,

से नञि बूझि रहल छी।।

के जराओत एहि लाश खासके,

एहि बातक अछि चिन्ता।

उगल चान नञि रहल अन्हरिया,

जेकरे छल सिहन्ता।।

बेटी हमर रूप के रानी ,

बापे हुनक रुपैया हीन।

घटक मुँह पर थुकि दैत छल,

देत कथी इ दुखिया दीन।।

देह आत्मा बेचिक' केलहुँ,

जे छल एकटा कन्यादान।

दशो दिशा अन्हार लगइए,

कहिया होयत नवल विहान।।

बेटीके छनि उजरल नैहर,

सासुर छनि लचरल लाचार।

भाय एको नञि बहिन मे असगर,

ब्रम्हा लिखलनि ब्रम्ह विचार।।

हम समाजक नजरि मे दोषी ,

दोषी हमर गरीबी।

हम अभिशापित हाथ मलै छी,

के छथि हमर करीबी।।

बुरिबक लोक बुरिबक बुझइए,

कबिलाहा फेकइए थूक।

साधनहीन गरीब बुझिक',

सम्बन्धी लए जड़बए ऊक।।

रंग बीच बेरंग रहैछी,

फगुआ आऔर दिवाली।

दुनियाँ जखन भुलाएल रहइए,

विषवाला मधु प्याली मे।।

छी समाज के छोटकी भौजी,

छेड़-छाड़ अपमान सहक लेल।

हमहींट टा उपयुक्त मात्र छी,

नोनगर करुगर बात सुनक लेल।।

जीवन दीप मिझाएल हमर अछि,

कोयलीक बोली करुगर भेल।

स्नेहक जरल खाक भेल,

कारण दीपक मे नञि तेल।।

मन करइए त्यागि देबक लेल,

रिस्ता एहि संसार सँ।

महा सेज पर महा निन्द मे,

शयन करी अधिकारसँ।।

काँव-काँव करै छी बौआ,

 



काँव-काँव करै छी बौआ,

लोक बूझइए कौआ ।

सब केओ अहाँकें चिन्हि गेल अछि,

अनकर छी धनखौआ।।

महा मदारी मात्र मुदा छी,

नञि रहलहुँ शिवशंकर।

बहुत सूर्य छथि उदित अकाशे,

आब के बूझत दिनकर।।

भ्रम के त्यागू फेकू डमरू,

अपन बचाउ प्रतिष्ठा।

आबो शीघ्र सुधारू छवि के,

लोक बूझइए विष्ठा।।

छोरि प्रपंच ;पाप के त्यागू,

नञि रहलहुँ विश्वासित।

कहु कतेक दिन रहब सराहल,

दुष्टेसँ परिभाषित।।

दूष्टक दृष्टिकोण के त्यागु,

सीखू सज्जन के संस्कार।

शिष्ट आचरण चरण के राखू,

राखू उत्तम श्रेष्ट विचार।।.........

आबो करियौ सक्षम उचित विचार।

 


मनक मर्म मिथिला वासीसँ ,सुनबै छी सरकार।

नञि सपूत मिथिला मे रहलै ,के करतै उद्धार।।

मैथिल भैया यौ, आबो करियौ सक्षम उचित विचार।

नारीक शक्ति स्वरूप के देखियौ,घर -घर अछि लाचार।

दूष्ट  दहेजक कारण  नारी, सहइए अत्याचार।।

मैथिल भैया यौ,मन मे रखियौ आबो श्रेष्ठ विचार।

धोती पर जिन्स चढ़ल अछि,शाड़ी पर सलबार।

कपटी कामी-क्रोधी के भेल,मिथिला मे सरकार।।

मैथिल भैया यौ,मन मे राखब उत्तम श्रेष्ठ विचार।

रसगुल्लापर माछक कुटिया,मैथिल के संसार।

बरियातीक लेल खसीक जान जाए,इ नञि शिष्टाचार।।

मैथिल भैया यौ,आबो करियौ सक्षम उचित विचार।

घृतक नाम नञि;दही लुप्त भेल ,पापड़ आऔर अँचार।

ओलक चटनी हकन कनइए ,तिलकोरक धिक्कार ।।

मैथिल भैया यौ................

कुटिया बुट्टी भक्ष जिनक छनि,छथि ओ महिषासुर।

सिंहवाहिनी माता दुर्गा, औती आब जरूर।।

मैथिल भैया यौ...............

बहिन जानकी जागू सीता,जग-जननीक अवतार।

नारी भ्रूणक हत्या होइए,मिथिला मे भरमार।।

मैथिल भैया यौ................


रचनाकार - बद्रीनाथ राय

मिथिला डूबल अन्हरिया मे ना।।


 बहिन यै एकबेरि पुनि अबियौ ,जनक नगरिया मे।

मिथिला डूबल अन्हरिया मे ना।।

बढ़लै दूष्ट दहेजक लोभी,सत्ता कपटी कामी-क्रोधी।

सब केओ लिप्त भेल अछि,गणिका आऔर छुतहरिया मे।।

मिथिला डूबल...........

सगरो चोर भ्रष्ट बटमार,होय छै रौदी बाढ़ि सुखाड़।

सौंसे काँटे पसरल मिथिला नगर डगरिया मे।।

मिथिला.................

कृषकक पैर गड़ल अछि कील,खोलियौ कल करखाना मील।

होय छै नित्य पलायन पेटक लेल शहरिया मे।।

मिथिला ...............

भरल अछि क्रोध विरोध प्रतिशोध,दियौ दिव्य ज्ञानकेर बोध।

मिथिला फँसलै जाक' उर्मि बीच लहरिया मे।।

मिथिला..............

नञि अछि मिथिला मे रोजगार,कुण्ठित कलुषित दूषित विचार।

 सूतल कालनेमि सिंहासन उँच्च अटरिया मे।।

मिथिला..................

सगरो पुष्पित अछि विष वेल,रावण सिंहासन अछि भेल।

सत्ता शयन करइए स्वर्ण सोम खड़खड़िया मे।।

मिथिला......................


रचनाकार - बद्रीनाथ राय

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई

 *कृपया बिना रोए पढ़ें।  यह मेसेज मेरे दिल को छू गया है*

जिवन संगिनी - धर्म पत्नी की विदाई 

अगर पत्नी है तो दुनिया में सब कुछ है।  राजा की तरह जीने और आज दुनिया में अपना सिर ऊंचा रखने के लिए अपनी पत्नी का शुक्रिया।  आपकी सुविधा असुविधा आपके बिना कारण के क्रोध को संभालती है।  तुम्हारे सुख से सुखी है और तुम्हारे दुःख से दुःखी है।  आप रविवार को देर से बिस्तर पर रहते हैं लेकिन इसका कोई रविवार या त्योहार नहीं होता है।  चाय लाओ, पानी लाओ, खाना लाओ।  ये ऐसा है और वो ऐसा है।  कब अक्कल आएगी तुम्हे? ऐसे ताने मारते हो।  उसके पास बुद्धि है और केवल उसी के कारण तो आप जीवित है।  वरना दुनिया में आपको कोई भी  नहीं पूछेगा।  अब जरा इस स्थिति की सिर्फ कल्पना करें:

एक दिन *पत्नी* अचानक  रात को गुजर जाती है !

घर में रोने की आवाज आ रही है।  पत्नी का *अंतिम दर्शन* चल रहा था।

उस वक्त पत्नी की आत्मा जाते जाते जो कह रही है उसका वर्णन:

में अभी जा रही हूँ अब फिर कभी नहीं मिलेंगे

तो मैं जा रही हूँ।

जिस दिन शादी के फेरे लिए थे उस वक्त साथ साथ जियेंगे ऐसा वचन दिया था पर इस   अचानक अकेले जाना पड़ेगा ये मुज को पता नहीं था।

मुझे जाने दो।

अपने आंगन में अपना शरीर छोड़ कर जा रही हूँ।  

बहुत दर्द हो रहा है मुझे।

लेकिन मैं मजबूर हूँ अब मैं जा रही हूँ। मेरा मन नही मान रहा पर अब में कुछ नहीं कर सकती।

मुझे जाने दो

बेटा और बहु रो रहे है देखो। 

मैं ऐसा नहीं देख सकती और उनको दिलासा भी नही दे सकती हूँ। पोता  बा  बा बा कर रहा है उसे शांत करो, बिल्कुल ध्यान नही दे रहे है।  हाँ और आप भी मन मजबूत रखना और बिल्कुल ढीले न हों।

मुझे जाने दो

अभी बेटी ससुराल से आएगी और मेरा मृत  शरीर देखकर बहुत रोएगी तब उसे संभालना और शांत करना। और आपभी  बिल्कुल नही रोना।

मुझे जाने दो

जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। जो भी इस दुनिया में आया है वो यहाँ से ऊपर गया है। धीरे धीरे मुझे भूल जाना, मुझे बहुत याद नही करना। और इस जीवन में फिर से काम मे डूब जाना। अब मेरे बिना जीवन जीने की आदत  जल्दी से डाल देना।

मुझे जाने दो

आप ने इस जीवन में मेरा कहा कभी नही माना है। अब जिद्द छोड़कर वयवहार में विनम्र रहना। आपको अकेला छोड़ कर जाते मुझे बहुत चिंता हो रही है। लेकिन मैं मजबूर हूं।

मुझे जाने दो

आपको BP और डायबिटीज है। गलती से भी मिठा नही कहना अन्यथा परेशानी होगी।  

सुबह उठते ही तो दवा लेना न भूलना। चाय अगर आपको देर से मिलती है तो बहु पर गुस्सा न करना। अब में नहीं हूं यह समझ कर जीना सीख लेना।

मुझे जाने दो

बेटा और बहू कुछ बोले तो

चुपचाप सब सुन लेना। कभी गुस्सा नही करना। हमेशा मुस्कुराते रहना कभी उदास नही होना। 

मुझे जाने दो

अपने बेटे के बेटे के साथ खेलना। अपने दोस्तों  के साथ समय बिताना।  अब थोड़ा धार्मिक जीवन जिएं ताकि जीवन को संयमित किया जा सके।  अगर मेरी याद आये  चुपचाप रो लेना लेकिन कभी कमजोर नही होना।

मुझे जाने दो

मेरा रूमाल कहां है, मेरी चाबी कहां है अब ऐसे चिल्लाना नही। सब कुछ दचयन से रखने और याद रखने की आदत करना। सुबह और शाम नियमित रूप से दवा ले लेना। अगर बहु भूल जाय तो सामने से याद कर लेना। जो भी खाने को मिले प्यार से खा लेना और गुस्सा नही करना।

मेरी अनुपस्थिति खलेगी पर कमजोर नहीं होना।

मुझे जाने दो

बुढ़ापे की छड़ी भूलना नही और  धीरे धीरे से चलना।

यदि बीमार हो गए और बिस्तर में लेट गए तो किसी को भी सेवा  करना पसंद नहीं आएगा।

मुझे जाने दो

शाम को बिस्तर पर जाने से पहले एक लोटा पानी माँग लेना।  प्यास लगे तभी पानी पी लेना।

अगर आपको रात को उठना पड़े तो अंधेरे में कुछ लगे नही उसका ध्यान रखना।

मुझे जाने दो

शादी के बाद हम बहुत प्यार से साथ रहे। परिवार में फूल जैसे बच्चे दिए। अब उस फूलों की सुगंध मुजे नही मिलेगी।

मुझे जाने दो

उठो सुबह हो गई अब ऐसा कोई नहीं कहेगा। अब अपने आप उठने की आदत डाल देना किसी की प्रतीक्षा नही करना।

मुझे जाने दो

और हाँ .... एक बात तुमसे छिपाई है मुझे माफ कर देना।

आपको बिना बताए बाजू की पोस्ट ऑफिस में बचत खाता खुलवाकर 14 लाख रुपये जमा किये है। मेरी दादी ने सिखाया था। एक एक रुपया जमा कर के कोने में रख दिया। इसमें से पाँच पाँच लाख बहु और बेटी को देना और अपने खाते में चार लाख रखना आपके लिए।

मुझे जाने दो

भगवान की भक्ति और पूजा करना भूलना नही। अब  फिर कभी नहीं मिलेंगे !!

मुझसे कोईभी गलती हुई हो तो मुजे माफ कर देना।

 *मुझे जाने दो*

 *मुझे जाने दो*

        🌹🌹 *रचना* 🌹🌹

 *संजीव कृष्ण श्याम सखा*

         *संस्थापक*

*श्री बृज रस धारा धर्मार्थ सेवा संस्थान*श्री धाम वृंदावन*

   *9997807846* *8218507043*

मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

माँ तेरे आँचल की वो चवन्नी

 


माँ तेरी बचपन की याद आती है वो लोरी

जो बदल गयी ज़िन्दगी की कशमकश में ।

ढूंढता हु फिर से वही बेफिक्र नादानियो को

जो छूट गयी बेचैन ज़िन्दगी की कशमकश में ।।


कहा खो गयी ,कहा वो तेरे पल्लू की चवन्नी

जिनको पाकर पुलकित पँख उड़ते थे गगन में ।

अब कमाकर ढेरो नोट और दौलत को भी

रहता हु कियूँ मायूस , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।


 दिल करता है लौट आयु फिर से अपने उसी

 चहकते खिलखिलाते रूठते नादान बचपन मे ।

 माँ थक गया हूं बहुत भागते भागते इस भीड़ मै

 पर मिला नही सुकून , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।


 नवाजती थी दुआओं से दिन रात मुझको माँ तू

 अब तेरा हाल पूछने को भी नही फुर्सत मुझको ।

 खुद भूखी रहकर पहला निवाला मुझको खिलाया

 अब मर गयी भूख मेरी , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।


  माँ तेरी बचपन की याद आती है वो लोरी

जो बदल गयी ज़िन्दगी की कशमकश में ।

ढूंढता हु फिर से वही बेफिक्र नादानियो को

जो छूट गयी बेचैन ज़िन्दगी की कशमकश में ।।


 ✍️✍️निशान्त झा "बटोही"✍️✍️


बुधवार, 13 जनवरी 2021


 सुच्चा मैथिल मिथिला के जगाउ यौ मैथिल |स

पूर्वा पछवा पवनसँ मिथिला के बचाव यौ मैथिल ||

दुष्टक नजरि नञि लागए मैथिल, मिथिला  माटि मनोहर के |

धरती गगनकेँ पावन राखी, पुष्पित करु सरोवरके||

गीत विकाशक लगनी सोहर गाउ यौ मैथिल |

सुच्चा़.........

कृषियज्ञ के हवनकुण्ड मे मंत्र हो गहुम गीता के |

धानवाण पढि रक्षा करियौ मिथिला परम पुनीता के  ||

माटि हमर बेसी सबसँ उपजाऊ यौ मैथिल ।

लोरीक कें हम नमन करै छी,सलहेसक मर्यादा कें 

चण्डी चननिकें शत् शत् विनती,विनती जीवन सादाकें।

घर घर ज्ञानक वैभव दीप जराउ यौ मैथिल।

सुच्चा मैथिल मिथिला..........

मंगलवार, 12 जनवरी 2021


 हम छी सुच्चा मैथिल भैया,

मैथिलकें संतान यौ।

हमरे पौरुष पर मिथिलामे ,

होय छै शाझ-विहान यौ ।

देखु आइ उपेक्षित हमहीं,

हम छी एखनो बारल ।

माँ मैथिली सेवक हमहीं

एखनोधरि छी टारल।।

करु हमर पंचैती भैया 

हम जनकक संतान यौ।।

हम कृषक छी पान मखानक,

हमहीं मरुआ धानक। 

हमरे मे सलहेशक पौरुष

वंशज महा महानक।।

गोत्र हमर विद्वानक हमरो

सहब कतेक अपमान यौ 

हमरे पौरूष पर.....।।

कवि कोकिलकें लेखनि हमरे,

लोरीक के लाठी सेहो।

बण्ठा वीरक वल हमरामे

दीनासन हमरे देहो।।

हमहीं दीना हमहीं लोरीक,

सब गुणकेर हम खान यौ।

हमरे पौरुष पर.......।

बहिन चनैनक धरती मिथिला,

पोखरि कमल फुलाएल।

सलहेशक फुलबारी सींचल,

स्वर्ग उतरि छल आएल।।

सीता सतवर्ती के हमरो,

भेटल अछि वरदान यौ।।

हमरे पौरुष..

गीता पर चिन्तन अछि हमरे,

कृषि कर्म नगरे नगरे।

गहुम गीता धान वाणकेर,

पाठ करि डगरे डगरे।।

व्रम्ह भेला याचक मिथिलामे

पाहुन छथि श्रीराम यौ।।

हमरे पौरुष............

पूर्वज हमर केलनि हरवाही,

उपजल बेटी सीता।

बढ़ल मान मिथिलाकेर तखनहिं

पावन परम पुनीता।

हमरे पूर्वज के भेटल छनि,

शिव शंभुक वरदान यौ।

हमरे पौरूष.............................।


 मिथिला जेकर अपन छै, 

ओकरे मे हम साटब |

रक्ष भाव जे रखने मन मे,

पैर ओकर हम काटब||


ज्ञानक गरिमा हम जनै छी, 

ताँइ आइ  मैथिल कहबै छी|

हमरे मिथिला हमरे धरती ,

हम उपज के काटब||

मिथिला......

बण्ठा भाइसँ लेब विचार हम, 

आऔर लोरीकसँ लाठी लेब|

दीनाक देल इजोतक दर्शन, 

हम समाज मे बाँटब ||

रक्ष भाव. ......

ज्ञान सुधामयी निर्मल  मिथिला,

भव्य दिव्य अछि भाल |

जाति धर्म के भेद के भेदब,

आओर खाइध के पाटब||

मिथिला....... 

मिथिला के जे बाँटि रहल अछि, 

देखियौ हमरे डाँटि रहल अछि|

हेतै विकाश मिथिला धरतीकेर, 

बैसि विचार के  बाँटब |

रक्ष भाव.....

मिथिला के हम क्रान्तिदूत छी, 

घेरने रोग बिमारी, 

एहि अनहार  मे चाही हमरा, 

वैचारिक चिनगारी|

गली गली अनहार घर मे,चन्द्र सूर्य के साटब

मिथिला.......

जे हमरा बुरिबक बुझइए, 

बुझियौ अपने पैर कटइए|

आब चलाकी मुदा नञि चलतै,

अंकुशसँ हम आँकब||

मिथिला........ 

सुख शान्ति समृद्धि मनोहर, 

हम समाज मे आनब|

बहुत ठकेलहुँ फेर ठकाएब नञि, 

आब आगि नञि पाकब |

मिथिला..... 

हमरा मिथिला राज नञि  चाही, 

भेटत  तँ विधिवत् हम लेब |

हम्मर हिस्सा हमरा चाही,

नञि सुनब हम डाँटब ||

मिथिला...... 

वैचारिक कोमल किसलयसँ, 

हम वैचारिक आगि जराएब|

बहिन  चनैनिकेर खोंइछि भरब हम, 

सलहेशक पौरुष हम पाएब||

मिथिला...... ......


 कृषक अन्न के दाता भूखे,

राजमहल खु़शियाली।  

साम-सोम की सरिता में,

होती रंगीन दिवाली।  

कृषकों के हीं खुँन बहाकर,

लाल रूमाल किये जाते।

देने की कुछ बात न होती।

कर में खुँन लिये जाते।।

सुकुमारी सत्ता सोई है,

सजी सिंहासन सोने की।

श्रवनशक्ति खो बैठी है,

आवाज न सुनती रोने की।।

जो है देश का भाग विधाता,

वही आज भूखा रहता।

लक्ष्मी की तकदीर जो लिखते,

उनका तन नंगा रहता।।

प्रतिनीधि के हाथ अंगुठी,

पुछो जड़े नगीनो से।

संसद् की दीवार रंगी है,

कृषकों के हीं खूँनो से।।

विलासिता के द्युत फलक पर,

गोटी फेंकी जाती है।

कृषक चिता पर राजनीति की,

रोटी सेंकी जाती है।।

कृषि क्षेत्र में पैर न रखते,

कृषक श्रेष्ठ कहलाते हैं।

सरकारी अनुदानों को भी,

गीद्ध झपटकर खाते हैं।।

राजनीति में ठुमके नखरे,

अभिनय के सिर ताज यहाँ।

कृषक चिता पर किला बनाकर,

जीते हैं रसराज यहाँ।।

रक्त पिपासिनी सत्ता की,

मखमली गाल की लाली।

कृषकों को तंगहाल बनाती,

इनकी बिन्दिया बाली।।


नोट-प्रस्तुत कविता हमारे लोकप्रिये प्रधान मंत्री मोदी जी पर नहीं लागु होता है।


 वह कौन है?जो मौन है।

मार्तण्ड के प्रखर ज्योति मे ,

तन मन को करता होम है।

देते नही जिसे शीतलता,

हिम -हवा और सोम है।

जिसका नीरव क्रन्दन मात्र,

सुन रहा एक व्योम है।

समाज का संचालक भी,

खींचता मात्र उसी का लगाम,

खूँन बहाता संचालक भी

देता नहीं लहु का दाम।

दिनभर खेतों में जलता,

घर में होता है कुहराम।

अाँसू पीकर सोते बच्चे ,

दिन-रात और शुबह-शाम।

कर्ज अतीथि की सेवा में ,

मरता जीता रहता है।

क्रन्दन-कुन्ज में मासुमों की

बहती आँसू सरिता है।।

नोट -विद्वान एवं विदुषि मार्मिक मार्गदर्शन करें।


 जेठक दुपहरिया पछबा बसात,

डाहि रहल विरहिन के शिशु नवजात।

शैशव छै दग्धल पियासल छै प्राण,

विपदाकें मारल पर भूखक लगाम।।

पत्थरके हिया लए मालिक गमार,

फुटहाके जलखइ पर माथा सवार।

कृषकक छै कण्ठ सुखल मालिक मुख पान,

समाज व्यवस्था पंचक छै वेढ़ब विधान।।

गरीबी के खम्भामे बान्हल अछि प्राण,

भारत कहाबैत अछि फुसिञे महान।।

के देशके आजाद कए केलनि अहन भूल,

डाारि डूबल अछि दूधक गंगा प्यासल अछि एखनो मूल।।

सरस्वतीके गुदड़ी लटकल लक्षी के तन पटोर,

एकसरि राधा रास लीन छथि विरहिन नयना नोर।।


 हम छी सुच्चा मैथिल भैया,

मैथिलकें संतान यौ।

हमरे पौरुष पर मिथिलामे ,

होय छै शाझ-विहान यौ ।

देखु आइ उपेक्षित हमहीं,

हम छी एखनो बारल ।

माँ मैथिली सेवक हमहीं

एखनोधरि छी टारल।।

करु हमर पंचैती भैया 

हम जनकक संतान यौ।।

हम कृषक छी पान मखानक,

हमहीं मरुआ धानक। 

हमरे मे सलहेशक पौरुष

वंशज महा महानक।।

गोत्र हमर विद्वानक हमरो

सहब कतेक अपमान यौ 

हमरे पौरूष पर.....।।

कवि कोकिलकें लेखनि हमरे,

लोरीक के लाठी सेहो।

बण्ठा वीरक वल हमरामे

दीनासन हमरे देहो।।

हमहीं दीना हमहीं लोरीक,

सब गुणकेर हम खान यौ।

हमरे पौरुष पर.......।

बहिन चनैनक धरती मिथिला,

पोखरि कमल फुलाएल।

सलहेशक फुलबारी सींचल,

स्वर्ग उतरि छल आएल।।

सीता सतवर्ती के हमरो,

भेटल अछि वरदान यौ।।

हमरे पौरुष..

गीता पर चिन्तन अछि हमरे,

कृषि कर्म नगरे नगरे।

गहुम गीता धान वाणकेर,

पाठ करि डगरे डगरे।।

व्रम्ह भेला याचक मिथिलामे

पाहुन छथि श्रीराम यौ।।

हमरे पौरुष............

पूर्वज हमर केलनि हरवाही,

उपजल बेटी सीता।

बढ़ल मान मिथिलाकेर तखनहिं

पावन परम पुनीता।

हमरे पूर्वज के भेटल छनि,

शिव शंभुक वरदान यौ।

हमरे पौरूष.............................।


 रिस्वत आज रिवाज बनी है,

नई संस्कृति भ्रस्टाचार।

राजनीति के शब्दावलि में,

रही नहीं अब शिष्टाचार।।

रक्तों से लाल रुमाल भरा,

जीवन मधुमय खुशहाल हरा।

इन्साफ के मुरत साफ नहीं,

वस्त्रों में इनके दाग भरा।।

भाषा शैली भाषण बोली,

में दिखते नापाक इरादे।

सत्ता की चोली से चिपके,

करते हैं नित झुठे वादे।।

धर्म-कर्म और मर्म भिन्न है,

नैतिकता से दुर बहुत है।

सुरा-सुन्दरी के सौदागर,

आदत से मजबुर बहुत है।।

दल की दलदल में फँसकर हम,

मरते नहीं कराह रहे हैं।

नव-निर्माण हो भरत खण्ड का,

ऐसा कब से चाह रहे हैं।।

विकसित नहीं विकाशशील है,

पलने में सोती सरकार ।

किसे बुरा या भला कहूँ मैं,

सत्ता को शत-शत धिक्कार।।


 कौवाकेर पंचैती बैसल,

पहीरि पाग अछि निर्णय भेल।

जनसेवाकें काज करि किछु,

सत्ता लेल शतरंजक खेल।।

विष्ठा पर अधिकार हमर अछि,

विष्ठा पौष्टिक च्यवनप्राश।

लड़ि लड़ाक'खेलहुँ सब दिन

गिद्ध नीति पर एखनो आश।।

लोक कहाँ अछि बाँचल बुरिबक

जे सुनि लितए बात हमर।

बुझलक हमर चलाकी सबटा,

सावधान अछि गाँव नगर।।

एक मात्र मार्ग अछि बाँचल,

भाषा पर किछु काज करी।

हम चलाक छिहें पहिनहिसँ,

मिथिला राजक नाम धरी।।

हम कौवा मर्मज्ञ ज्ञानकेर,

मुखिया मात्र रहब हमहीं।

ज्ञानक मात्र एक ठिकेदार हम 

बाँकी सभ कनहा कनही।।

गुदा मार्गसँ बाजि रहल छी,

गुदा मार्ग अछि देवक देल।

झुठ साँच किछुओ हम बाजब,

करब चलाकी सत्ता लेल।।

हम किनको मैथल नञि मानब,

मैथिल मात्र हमर खनदान।

बाँचल आब प्रपंचेटा अछ,

पापी पेटक करी निदान।।

हम छी दागल साँढ़ प्रतिष्ठित,

ढ़ेकरब अछि भाषाकेर मानक।

हम जे लिखलहुँ सत्य शुद्ध अछि

अछि अशुद्ध लिखल जे आनक।।

हम मैथिल छी महा मनस्वी,

मिथिला पर हमरे अधिकार।

हमर दुष्टता जग जाहिर अछि,

मिथिलाकेर हमहीं रखबार।।

घर्मक आरि मे बैसि खेलहुँ हम ,

मलपुआ घृत आऔर मलाइ।

दुरूपयोग केलहुँ क्षमताकेर,

सत्ता छलि हमर भौजाइ।।

धर्मक नेता मिथिला नेता,

सभ दलकेर हम नेता छी।

बुरिबक लोक बात नञि बुझए,

हम ज्ञानक विक्रेता छी।।

हम अनाथ छी,जगन्नाथ नञि,

रूसली हमर अपन भौजाइ।

एकबेरि पुनि चालि चलब हम,

मिथिला राजक देब दोहाइ।।