ये कैसी मनहूस घड़ी में आये राज बसन्त I
लॉक डाउन में किसलय की भी शोभा नहीं बसन्त II
लॉक डाउन में किसलय की भी शोभा नहीं बसन्त II
लॉक डाउन ले आया आफत छाया घोर अंधेरा I
दिन में भी दिखते हैं तारे कोई नहीं सहारा I
यहॉ कोरोना के दहशत में नहीं कामिनी कन्त II ये ...
दिन में भी दिखते हैं तारे कोई नहीं सहारा I
यहॉ कोरोना के दहशत में नहीं कामिनी कन्त II ये ...
आगे कुआँ पीछे खाई बीच जान जाने को आयी I
छूटी रोजी भूखे प्यासे हाल बेहाल में हुई पिटाई I
निर्मम क्रूर बनी शासन का यहाँ न दिखता अंत II ये....
छूटी रोजी भूखे प्यासे हाल बेहाल में हुई पिटाई I
निर्मम क्रूर बनी शासन का यहाँ न दिखता अंत II ये....
आगे कुआँ कोरोना का पीछे लॉक डाउन की खाई I
बदहवास बेहोश करोड़ों जनता की चिंता गहराई I
बदनसीब उन सब जीवन का निकट दिख रहा अंत II ये..
बदहवास बेहोश करोड़ों जनता की चिंता गहराई I
बदनसीब उन सब जीवन का निकट दिख रहा अंत II ये..
देख दुर्दशा इस भारत की नहीं कूकती कोयल I
भौरों का गुंजार बंद पंछी के कलरव ओझल I
प्रलय मचा रखा है यहाँ कोरोना का विषदन्त II ये...
भौरों का गुंजार बंद पंछी के कलरव ओझल I
प्रलय मचा रखा है यहाँ कोरोना का विषदन्त II ये...
कई कामिनी कन्त वियोग में रोती हैं दिन रात यहाँ पर I
माँ की ममता कई घरों में फूट फूट रोती किस्मत पर I
अकाल काल कवलित के घर में नहीं शोक का अंत II ये...
माँ की ममता कई घरों में फूट फूट रोती किस्मत पर I
अकाल काल कवलित के घर में नहीं शोक का अंत II ये...
आये तो नि:शब्द यहॉ पर अपना समय बिताना I
अपने ऋतु के वायु वनस्पतियों को भी समझाना I
कोरोना के गीत यहां पर चैती चैता नहीं बसंत II
अपने ऋतु के वायु वनस्पतियों को भी समझाना I
कोरोना के गीत यहां पर चैती चैता नहीं बसंत II
जन जीवन के दुःख से आहत यहाँ उदास प्रकृति है I
फूलों में भी कांटो जैसी दीख रही विकृति है I
लॉक डाउन से यहॉ हुई शोभा सुषमा का अंत II
फूलों में भी कांटो जैसी दीख रही विकृति है I
लॉक डाउन से यहॉ हुई शोभा सुषमा का अंत II
अब न कभी मसहूस घड़ी में आना राज बसन्त II
रचनाकार-
हृदयनारायण झा जी
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