सुनहरी सपना
इस दीवाली पर घरवाली,
बोली कि शर्मा जी।
और चाहे कुछ न लाना,
पर बस इतना करना जी।
सोने का गलहार मुझे,
इक अच्छा सा घड़वाना।
कंगन थोड़े वज़नी से हों,
नथनी में हीरे जड़वाना।
हम भी तो पूरे हीरो थे,
झट सुनार को फोन लगाया।
आँखें चकाचौंध हो जाएँ,
गहनों का वो सैट मंगाया।
सज-धज कर ज्यों ही मिश्राणी,
सम्मुख आकर बोली सजना।
गिरे बैड़ से नीचे एकदम,
टूट गया वो सुनहरी सपना।।
जगवीर शर्मा
कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद,
उत्तर प्रदेश।
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