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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

   सुनहरी सपना
इस दीवाली पर घरवाली,
बोली कि शर्मा जी।
और चाहे कुछ न लाना,
पर बस इतना करना जी।
सोने का गलहार मुझे,
इक अच्छा सा घड़वाना।
कंगन थोड़े वज़नी से हों,
नथनी में हीरे जड़वाना।
हम भी तो पूरे हीरो थे,
झट सुनार को फोन लगाया।
आँखें चकाचौंध हो जाएँ,
गहनों का वो सैट मंगाया।
सज-धज कर ज्यों ही मिश्राणी,
सम्मुख आकर बोली सजना।
गिरे बैड़ से नीचे एकदम,
टूट गया वो सुनहरी सपना।।
                जगवीर शर्मा
         कवि एवं मंच संचालक
         मोदीनगर, गाज़ियाबाद,
         उत्तर प्रदेश।
         मोबा.8307746794 (w)
                 9354498927
      


शनिवार, 18 अप्रैल 2020

तेरी यादों का सबब है ऐसा .. रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! तेरी यादों का सबब !!


 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।
 रहती मुस्कान लवो पे बेशक
 रहता खुशियों से,ये डर कैसा ।।

 क्या करूँ में ये शिकवा तुझसे
 जब खुदा ही,रूठ गया मुझसे ।
 मत पोछो इन नम आंखों को
 अश्क लगता है, हमसफ़र जैसा ।।

 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।।

 चुभे जो काँटे गमो की राहो में
 मिलेगा सुकून, मौत की बांहों में ।
 ज़िन्दगी जख्म की मिसाल बनी
 "बटोही" ये तमाशा, तू बना कैसा ।।

 तेरी यादों का सबब है ऐसा
 दर्द को दिल मे,छुपाने जैसा ।।

 रचना -
 निशान्त झा "बटोही"




शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

अपने पहलू में मुझको जगह दिजिये ।। रचनाकार - मिथिलेश राय

                    !! गज़ल !!

_______
ना दवा दिजिये ना दुआ किजिये
अपने पहलू में मुझको जगह दिजिये

1•
ये उलझा सा पल जाने क्या होगा कल
थी धुंधली सी यादें और सहमें थे हम
दुर जाने से अक्सर मैं डरता रहा
अपनें दिल के क़रीब मुझको रख लिजिये

2•
दीप बनकर तेरे दिल में जलता रहा
तेरी अंधेरी दुनिया को रौशन किया
तेज आंधी आयी दिया बुझ सा गया
अब आप ही ये दिया जला दीजिये

3•
मौत चौखट पे मेरे शोर करता रहा
दिल से बाहर ना आने का जिद्द था मेरा
अब आप ही सनम फैसला लिजिये
अपने दिल से मुझे आप जुदा किजिये

© ✍..मिथिलेश राय
    धमौरा-०१-०७-२०१९

प्रस्तुतकर्ता-
निशान्त झा"बटोही"

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कैसी मनहूस घड़ी में आये राज बसन्त ।। रचनाकार - हृदयनारायण झा जी





ये कैसी मनहूस घड़ी में आये राज बसन्त I
लॉक डाउन में किसलय की भी शोभा नहीं बसन्त II
लॉक डाउन ले आया आफत छाया घोर अंधेरा I
दिन में भी दिखते हैं तारे कोई नहीं सहारा I
यहॉ कोरोना के दहशत में नहीं कामिनी कन्त II ये ...
आगे कुआँ पीछे खाई बीच जान जाने को आयी I
छूटी रोजी भूखे प्यासे हाल बेहाल में हुई पिटाई I
निर्मम क्रूर बनी शासन का यहाँ न दिखता अंत II ये....
आगे कुआँ कोरोना का पीछे लॉक डाउन की खाई I
बदहवास बेहोश करोड़ों जनता की चिंता गहराई I
बदनसीब उन सब जीवन का निकट दिख रहा अंत II ये..
देख दुर्दशा इस भारत की नहीं कूकती कोयल I
भौरों का गुंजार बंद पंछी के कलरव ओझल I
प्रलय मचा रखा है यहाँ कोरोना का विषदन्त II ये...
कई कामिनी कन्त वियोग में रोती हैं दिन रात यहाँ पर I
माँ की ममता कई घरों में फूट फूट रोती किस्मत पर I
अकाल काल कवलित के घर में नहीं शोक का अंत II ये...
आये तो नि:शब्द यहॉ पर अपना समय बिताना I
अपने ऋतु के वायु वनस्पतियों को भी समझाना I
कोरोना के गीत यहां पर चैती चैता नहीं बसंत II
जन जीवन के दुःख से आहत यहाँ उदास प्रकृति है I
फूलों में भी कांटो जैसी दीख रही विकृति है I
लॉक डाउन से यहॉ हुई शोभा सुषमा का अंत II
अब न कभी मसहूस घड़ी में आना राज बसन्त II

रचनाकार- 
हृदयनारायण झा जी