!! अगर जीना ये तो मरना क्या है !!
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।
जी रहा हूँ मे यही सोच सोचकर
अगर जीना ये तो मरना क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
अब खेलती है मेरी किस्मत मुझसे
शायद सीखा होगा ये हुनर तुझसे ।
टूटता हूँ में हर बार जुड़ने के लिये
समझ नही आता माजरा क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
लगता है क्यूँ डर अब हमदर्दों से
दर्द को हो गया है प्यार परदों से ।
किया करोगे देखकर मेरे जख्मो को
बस इतना बताजाओ दवा क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
रचनाकार -
निशान्त झा "बटोही"
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।
जी रहा हूँ मे यही सोच सोचकर
अगर जीना ये तो मरना क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
अब खेलती है मेरी किस्मत मुझसे
शायद सीखा होगा ये हुनर तुझसे ।
टूटता हूँ में हर बार जुड़ने के लिये
समझ नही आता माजरा क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
लगता है क्यूँ डर अब हमदर्दों से
दर्द को हो गया है प्यार परदों से ।
किया करोगे देखकर मेरे जख्मो को
बस इतना बताजाओ दवा क्या है ।।
बसती है जो कसक इस दिल मे
आखिर वो चुभन क्या है ।।
रचनाकार -
निशान्त झा "बटोही"
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