।खसूसियत
क्या कसीदे पढूं तेरी शान में।
तुम जहीन हो नफीस हो।
स्यारा हो कहकशाँ के।
तुम आफताब हो
चश्म -ए-नूर हो जहाँ के।
आनूस बन दिलों पर
हुकूमत कर रहे।
यह बशर कायल है
तेरी सादगी का।
चमक रहा रगील-ए-जमाल तेरी
पेशानी पर।
किया कमाल खुदा ने।
तुम बेहतरीन इन्सां हो।
कायनात के।
हूरें भी करती रश्क तुमसे।
मिलने को बेताब तुमसे।
फुर्सत से बनाया खुदा ने तुम्हे।
शाबाद रहो आबाद रहो
खुदा के फजल से।
वजु करता मै मेरी इल्तजा खुदा से।
ऐ मेरे मौला तुम्हे महफूज रखे हर बला से।
ऐ -महबूब-ऐ खलील
बेइंतहा मोहब्बत की मुझसे।
कितनी शिद्दत से की खदमत मेरी।
करी इमदाद गाहे -बगाहे।
मै काबिज हूँ आज बुलंदी पर।
मै कुर्बान हूँ तेरी ताकीद पर।
मै कपस हूँ तेरी मोहब्बत में।
मै पल रहा तेरे रहमो-करम पे।
जर्रा -जर्रा है दबा तेरे
अहसानो तले।
मै था गाफिल नही इल्म तेरी अहमियत का।
मै था डूबा बेखुदी में।
मै खुदगर्ज इस कदर
था मशगूल अपनो में।
मै तलबगार हू तेरा हर पहर।
मेरी संगदिली तो देखो।
नासाज थी तबियत तेरी
अर्से से।
थी मुझे सब खबर।
तमाशबीन बना देख रहा।
ना पूछी कैफ़ियत तहसील से।
बना रहा मै बेखबर।
ना ली खोज-खबर।
मै भूल बैठा तुझे रहवर।
मै पशेमान हूँ जुर्रत नही
नजरे मिलाऊँ तुमसे।
ऐ हमदर्द ऐ हमसफर।
तुम हो खैरख्वाह सभी के।
थकते ना कभी इबादत करते।
रहते हमेशा नजर मे उसके।
क्या हश्र हुआ तेरी नेकनियती का।
टूटी हड्डी उस मनहूस घडी।
मुसीबत कैसी आन पडी
हुई मुश्किल गुजर बसर।
नही मिली इमदाद उस बखत।
कोसा लोगो ने मुझे जमकर।
नही लायक तेरी पाक दोस्ती का किसी तरह।
।मिली लानते मुझे हर तरफ।
तुम खुदा के अजीज हो।
खुदा के करीब हो
खुदा रहता रूबरू तुमसे।
लेता कडा हम्तहान अदीब से।
परखता अजीज को हर वख्त।
खाता ना अजीब कभी शिकस्त।
जो देता इम्तहान ऐतराम से।
तुम बला के मतीम निकले।
अव्वल आये तुम इम्तहान मे।
जहाँ मिला तुम्हे मुकम्मल।
तुम खुद्दार हो इतने।
तुम्हे खुदा पे यकीन इतना।
छिडकते जान तुम खुदा पे जितना
नही कबूल तुम्हे जहां की दौलत।
जिन्दा हो तुम खुदा की बदौलत।
नही सच्चा मददगार मिले किसी जगह।
जहां चलता बदस्तूर
इसी तरह।
तुम तन्हा कहाँ थे।
बहर-ऐ-खुदा साथ था।
मेरी खुदगर्जी का आलम देखो।
कितने मजलुम थे मुसीबतों से तुम घिरे। खिचा आया दर पे तेरे।
तुम तो दरवेश ठहरे।
जरा भी दिखी न शिकन
चेहरे पर तेरे।
मुझसे किया नही कोई तकाजा।
मुझसे गिला ना शिकवा।
अजब फिराक दिल तुम निकले।
कितने अश्क तुममे जज्ब किऐ।
मुझे इल्म था न गुमान।
मजम्मत करते तुम गिला के।
नेक दिल तुम विरले
अल्लाह वाले बहुत मिले।
तुम ही अल्लाह की राह चले।
किया खैरमकदम मेरा
सब भूल के।
जोश-ऐ-खरोश से गले मिले।
खडा मै मानिन्द बुत बेबस।
नादान सतह बेहवश। अश्क से सराबोर था।।जार-जार मै रो रहा।
हिकारत भरी निगाह से
ना देख मुझे मौला।
खौफजदा हूँ तेरे कुफ्र से।
या अल्लाह मुझे बख्श दे।
दोजख ना हो नसीब मुझे।
दुआ दिल से मेरे निकले।
जुस्तजू है खुदा तुझसे।
जन्नत नसीब हो मेरे हमदर्द को।
हमेशा आबाद रहे शाबाद रहे।
अशोक जौहरी