।।।रक्षाबंधन ।।।
भाई बहन का प्यार रहे अमर।
दिया वचन बहन को
मै निभाऊँजीवन भर।
माँ तुल्य बन कर।
वात्सल्य लुटाया मुझ पर।
जब जब सैलाब विपत्तियों का मुझे डिगाए।
मन निराशा कुंठा अवसाद से भर जाए।
हतोत्साहित मन बिन उमंग।
जीवन नीरस बन जाए।
बहन गुरू बन राह दिखाए।
सिखा जीवन दर्शन
किया उचित मार्गदर्शन।
भाई पर आँच ना आए।
जब से होश सँभाला।
रहा आश्रित तुम ही पर।
सीख तुम्हारी शिरोधार्य कर।
प्रण पाण से निभाऊँ निरन्तर।
सूर्य प्रभा की दिव्य किरण।
सुयोग्य प्रकाशक तुम उपकरण।
भावना हिन्दुत्व कीभरी तुमने।
सच्चा आश्वासन देता तम्हें।
लाख आये विघ्न बाधा
मै निभाऊँ अपना वादा।
अदम्य साहसी बन।
सजग प्रहरी बन तने रहें।
बहन तुमने मुझे कहा
सिंघ शावक मुझे
गौरव से सीना फूल रहा।
बन कर दिखाऊंगा
सिंघ एक दिन तुम्हे।
गम्भीरता से सोच समझ कर
निर्भीक होकर उठाया।जो कदम।
पीछे ना हटाएगे।
शपथ तुम्हारी कुछ कर के दिखाएगें।
रक्षा सूत्र बांधा मेरी
कलाई पर।
कृतज्ञता से भर गया
कंठ तक।
पहले सब माँ बहनो का
सम्मान करो।
उनको सुरक्षा प्रदान करो।
तब मेरी ओर ध्यान करो।
उनकी अस्मिता की खातिर।
अपने प्राण निसार करो।
देश हित मे हो समर्पित।
करो जीवन अपना अर्पित।
माँ भारती का मान करो।
बनो आत्म विश्वासी अभिमानी।
देश पर हो कुर्बान।
मत झुकाना देश की शान।
सभ्य सुसंस्कृत शिक्षित नागरिक बन कर।
सच्ची सेवा समर्पण के बल पर।
दया भावना से भर कर।
सबका उपकार करो।
ईश्वर से करता कमना
बहन की ना हो कभी
अवमानना।
भाई बहन का प्रेम बन्धन।
सदा बना रहे आकर्षण।
करता रहे मेरा मार्ग दर्शन।
युग युग जियो मेरी बहन।
अशोक जौहरी