जिंदगी जीना आसान नहीं
अब औऱ कोई प्रमाण नहीं
लड़ते-झगड़ते वो मंजर देखा
अपनों को भोंकते ख़ंजर देखा
कहीं ज़मीन तो कही ज़मीर की
कहीं उल्फ़त तो कहीं तमीज़ की
हर शख़्स खड़ा चौराहे पर
तलवार की धार पर
इस फ़िराक में क़ी वार कर
वहशियों को तैयार देखा।
अतातयीयो की फ़ौज में
सत्ता के मौज में
दरिन्दों के दौर में
वो कसमसाती जिंदगी
चीत्कारती,कराहती
मरता आदमी
हैवानियत की हद तक
वो बिखरता संसार देखा।
कन्हैया झा आशुतोष
अद्भुत
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