SAHITYAA DHARA ME AAP KA SWAGAT HAI , APAKA YOGDAN SARAHNIY HAI , AAP APNI LEKH - AALEKH BHEJ SAKTE HAI AUR PATHAK GAN KO DE SAKATE HAI 9997313751,9634624383, मोदी नगर,ग़ज़िआबाद , मेरठ रोड उत्तर - प्रदेश E-mail: nishantkumarjha45@gmail.com

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

रक्षाबन्धन ।। अशौक जौहरी

 


।।।रक्षाबंधन ।।।
भाई  बहन का प्यार रहे अमर।
दिया वचन बहन को
मै निभाऊँजीवन भर।
माँ तुल्य बन कर।
वात्सल्य  लुटाया मुझ पर।
जब  जब सैलाब विपत्तियों का मुझे डिगाए।
मन निराशा कुंठा अवसाद से भर जाए।
हतोत्साहित मन बिन उमंग।
जीवन नीरस बन जाए।
बहन गुरू बन राह दिखाए।
सिखा जीवन दर्शन 
किया उचित मार्गदर्शन। 
भाई पर आँच ना आए।
जब से होश सँभाला।
रहा आश्रित तुम ही पर।
सीख तुम्हारी शिरोधार्य कर।
प्रण पाण से निभाऊँ निरन्तर। 
सूर्य प्रभा की दिव्य किरण।
सुयोग्य प्रकाशक तुम उपकरण।
  भावना हिन्दुत्व कीभरी तुमने।
सच्चा आश्वासन देता तम्हें।
लाख आये विघ्न बाधा
मै निभाऊँ अपना वादा।
अदम्य साहसी बन।
सजग प्रहरी बन तने रहें।
बहन तुमने मुझे कहा
सिंघ शावक मुझे
गौरव से सीना फूल रहा।
बन कर दिखाऊंगा
सिंघ एक दिन तुम्हे।
गम्भीरता से सोच समझ कर
निर्भीक होकर उठाया।जो कदम।
पीछे ना हटाएगे।
शपथ तुम्हारी कुछ कर के दिखाएगें।
रक्षा सूत्र बांधा मेरी 
कलाई पर।
कृतज्ञता से भर गया 
कंठ तक।
पहले सब माँ बहनो का
सम्मान करो।
उनको सुरक्षा प्रदान  करो।
तब मेरी ओर ध्यान  करो।
उनकी अस्मिता की खातिर।
अपने प्राण निसार करो।
देश हित मे हो समर्पित। 
करो जीवन अपना अर्पित।
माँ भारती का मान करो।
बनो आत्म विश्वासी अभिमानी।
देश पर हो कुर्बान। 
मत झुकाना देश की शान।
सभ्य सुसंस्कृत शिक्षित  नागरिक बन कर।
सच्ची सेवा समर्पण के बल पर।
दया भावना से भर कर।
सबका उपकार करो।
ईश्वर  से करता कमना
बहन की ना हो कभी
अवमानना। 
भाई बहन का प्रेम बन्धन। 
सदा बना रहे आकर्षण। 
करता रहे मेरा मार्ग दर्शन। 
युग युग जियो मेरी बहन।
     अशोक जौहरी

आज़ादी का अमृतोत्सव ।। अशौक जौहरी


आजादी का अमृतोत्सव 
आजादी के मतवाले
खूब लडे अंग्रेजो से।
कष्ट सहे अनेको। 
खेली होली खून से।
देश की खातिर मर मिटे।
कर्णधारो देश तुम्हारे हवाले।
अब हम स्वर्ग चले।
रग रग मे अमृत आजादी का बह रहा।
एक बून्द  स्वाभिमान की।
देशवासियो को पिला देना। 
75 वीं वर्षगांठ आजादी की अब परवान चढी।
हम सब मिल  मनाए 
अमृतोत्सव ।
खुशी से हम झूम उठे।
आत्म निर्भर हो भारत।
मोदी जी का स्वप्न साकार करो।
अहिन्सा,देशभक्ति, 
स्वालम्बी की मचान 
पर भारत  को चढा देना।
मिटे,गरीबी,बेरोज़गारी
भुखमरी
सब बने शिक्षित 
रोटी कपडा मकान
सबको दिला देना।
वसुदैव कुटुंबकम् का 
पाठ पढा देना।
मोदी जी का का उद्घोष रहे बुलन्द।
अन्दर बाहर  सीमा 
रहे चाक चौबन्द। 
 ,सुरक्षित रहे देश हमारा।
परमाणु से लैस सैन्य बल।
निर्भीक  साहसी सेना
दल।
करे मोदी नारा बुलंद। 
सबका हाथ सबका विकास।
पढे गीता,कुरान  साथ साथ।
मजबूत अर्थ  व्यवस्था 
सुधरे औद्योगिक अवस्था।
अति तीव्र संचार प्रणाली।
करे देश की रखवाली।
मोदी  राज मे भविष्य 
भारत  का उज्ज्वल। 
 विदेश नीति अति 
धवल।
मिटे गरीबी,बेरोज़गारी
मिले उत्तम शिक्षा।
सबको मिले रोटी,कपड़ा,मकान।
लो शपथ इस महोत्सव। 
नापाक चीन पाक ने
कब्जाई अवैध रूप  से जमीन। 
बहे खून कितना भी
एक एक इन्च जमीन बापस
लाना होगा।
तब तक चैन से ना सोना होगा। 
आतंकवादयो जेहादियो गद्दारो से लडना  होगा।
गर करे नारा बुलंद 
गाजवे_ए_हिन्द का।
मौत के घाट सुलाना होगा।
छीन लो पीओके नापाक
पाक से।
तिरंगा वहाँ फहराना होगा।
अखंड भारत का स्वप्न 
सरदार पटेल का साकार
करना होगा।
जय हिन्द जय भारत। 
   अशोक जौहरी



 

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

प्रेरणा ।।। अशोक जौहरी


 प्रेरणा 

उद्विग्नता मन मे थी भरी।

वह थी मेरी काल रात्रि। 

उंच्छृखल भावना थी बह रही।

मन मे थी पीडा बडी।

मानव उत्पीड़न से थी झुलसी।

माँ सरस्वती का किया आह्वान।

क्षणो मे हुआ पीडा अवसान।

माँ ने मुझे धीरज  दिया।

प्रेरक प्रसंग  अन्तः भरा।

लिखने को हुआ व्याकुल बडा।

आत्म चिन्तन जब किया।

कुंठा नैराष्य  अवसाद  से जग भरा।

अन्धविश्वास,अज्ञानता उपेक्षा का प्रसार बडा।

विषम परिस्थित से था

जग जकडा।

बहती मानस मे कलुषित 

धारा।

युग पुरुष दयानन्द  का उद्गम हुआ। 

युग दृष्टा तुष्टा काल दर्षी।

जीवन उनका पारदर्शी। अविजित दयानन्द स्वामी।

दयानन्द  स्वामी विश्व विभूति।

सानिध्य  उनका दिव्य अनुभूति। 

उनका स्मरण मेरा अनुकरण। 

दैदिप्त  होता मेरा अन्तःकरण। 

प्रेरणा उनकी मेरी काव्य  कृति।

जन जन करती जाग्रति।

लाभान्वित होती माँ भारती। 

दयानन्द  गर तुम ना होते।

खाते हम अन्धेरे मे गोते।

कूप मंडूक होते हम पडे।

हम है सदा तुम्हारे आभारी।

तुम हो मेरे भाग्य  प्रभारी।

तुममे लगे मति हमारी।

जब तक रहे गंगा मे पानी।

अमर रहे वीर सेनानी।

      अशोक  जौहरी



खसूसियत .. अशोक जौहरी

 



।खसूसियत

क्या कसीदे पढूं तेरी शान में।

तुम जहीन हो नफीस हो।

स्यारा हो कहकशाँ के।

तुम आफताब हो 

चश्म -ए-नूर हो जहाँ के।

आनूस बन दिलों पर 

हुकूमत कर रहे।

यह बशर कायल है 

तेरी सादगी का।

चमक रहा रगील-ए-जमाल  तेरी 

पेशानी पर।

किया कमाल खुदा ने।

तुम बेहतरीन इन्सां हो।

कायनात के।

हूरें भी करती रश्क तुमसे।

मिलने को बेताब  तुमसे।

फुर्सत  से बनाया  खुदा ने तुम्हे।

शाबाद रहो आबाद  रहो

खुदा के फजल से।

वजु करता मै मेरी  इल्तजा खुदा से।

ऐ मेरे मौला तुम्हे महफूज रखे हर बला से।

ऐ -महबूब-ऐ खलील

बेइंतहा मोहब्बत  की मुझसे।

कितनी शिद्दत  से की खदमत मेरी।

करी इमदाद गाहे -बगाहे।

मै काबिज  हूँ आज बुलंदी पर।

मै कुर्बान  हूँ तेरी ताकीद पर।

मै कपस हूँ तेरी मोहब्बत  में।

मै पल रहा तेरे रहमो-करम पे।

जर्रा -जर्रा है दबा तेरे 

अहसानो तले।

मै था गाफिल नही इल्म  तेरी अहमियत का।

मै था डूबा बेखुदी में।

मै खुदगर्ज इस कदर

था मशगूल अपनो में।

मै तलबगार हू तेरा हर पहर।

मेरी संगदिली तो देखो।

नासाज थी तबियत तेरी

अर्से से।

थी मुझे सब खबर।

तमाशबीन  बना देख रहा।

ना पूछी कैफ़ियत तहसील से।

बना रहा मै बेखबर।

ना ली  खोज-खबर।

मै भूल बैठा तुझे रहवर।

मै पशेमान हूँ जुर्रत नही

नजरे मिलाऊँ तुमसे।

ऐ हमदर्द  ऐ हमसफर।

तुम हो खैरख्वाह सभी के।

थकते ना कभी इबादत करते।

रहते हमेशा नजर मे उसके।

क्या हश्र  हुआ तेरी नेकनियती का।

टूटी हड्डी उस मनहूस घडी।

मुसीबत कैसी आन पडी

हुई मुश्किल  गुजर बसर।

नही मिली इमदाद उस बखत।

कोसा लोगो ने मुझे जमकर।

 नही लायक तेरी पाक दोस्ती का किसी तरह।

।मिली लानते मुझे हर तरफ।

तुम खुदा के अजीज हो।

खुदा के करीब हो

खुदा रहता रूबरू तुमसे।

लेता कडा हम्तहान अदीब से।

परखता अजीज को हर वख्त।

खाता ना अजीब कभी शिकस्त।

जो देता इम्तहान ऐतराम  से।

तुम बला के मतीम निकले।

 अव्वल आये तुम  इम्तहान  मे। 

जहाँ मिला तुम्हे मुकम्मल।

तुम खुद्दार  हो इतने।

तुम्हे खुदा पे यकीन इतना।

छिडकते जान तुम खुदा पे जितना 

नही कबूल तुम्हे जहां की दौलत।

जिन्दा हो तुम खुदा की बदौलत।

नही सच्चा मददगार मिले किसी जगह।

जहां चलता बदस्तूर

इसी तरह।

 तुम तन्हा कहाँ थे।

बहर-ऐ-खुदा साथ था।

 मेरी खुदगर्जी का आलम देखो।

कितने मजलुम थे मुसीबतों से तुम घिरे। खिचा आया दर पे तेरे।

तुम तो दरवेश ठहरे।

जरा भी दिखी न शिकन 

चेहरे पर तेरे।

मुझसे किया नही कोई तकाजा।

मुझसे गिला ना शिकवा।

अजब फिराक दिल तुम निकले।

कितने अश्क तुममे जज्ब किऐ।

मुझे इल्म था न गुमान।

मजम्मत करते तुम गिला के।

नेक दिल तुम विरले

अल्लाह  वाले बहुत मिले।

 तुम  ही अल्लाह की राह चले।

 किया खैरमकदम मेरा

सब भूल के।

जोश-ऐ-खरोश  से गले मिले।

खडा मै मानिन्द बुत बेबस।

नादान सतह बेहवश। अश्क  से सराबोर था।।जार-जार मै रो रहा।

हिकारत भरी निगाह से

ना देख मुझे मौला।

खौफजदा हूँ तेरे कुफ्र से।

या अल्लाह मुझे बख्श दे।

दोजख ना हो नसीब मुझे।

दुआ दिल से मेरे निकले।

जुस्तजू है खुदा तुझसे।

जन्नत नसीब हो मेरे हमदर्द  को।

हमेशा आबाद  रहे शाबाद रहे।

      अशोक  जौहरी







 
























सोमवार, 28 मार्च 2022

बोलती आँखे / अजीत कर्ण

 


👁️👁️ "बोलती ऑंखें" 👁️👁️

🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲


ज़माने से जब इतना ऊब जाते हैं,

अधिकार तक छीन लिए जाते हैं ,

हर बात पर ही ताने दिए जाते हैं ,

दिल में दबी आग सुलग जाते हैं ,

अश्क नयनों से निकल न पाते हैं ,

जुबां पर शब्द ही नहीं आ पाते हैं।


तब, कई राज़ दिल के खोलती ऑंखें।

सामने आके बहुत कुछ बोलती ऑंखें।


आशिक़ी में जब कोई दिल हार जाते हैं,

पर कुछ भी कहने से वे हिचकिचाते हैं ,

दिल की बात दिल में ही दबे रह जाते हैं,

मोहब्ब्त का पैग़ाम पहुॅंचा नहीं पाते हैं ,

पर आरज़ू दिलों के सुलगते ही जाते हैं,

चाहतें बेताब होकर दरवाज़े तलाशते हैं।


तब, कई राज़ दिल के खोलती ऑंखे।

सामने आके बहुत कुछ बोलती ऑंखें।


तन्हाई में विरह वेदना दिखाती ऑंखें ,

प्रेम, विश्वास, स्नेह से छलकती ऑंखें,

अंगारे, क्रोध और दया बरसाती ऑंखें,

कभी हर्ष से रोमांचित हो जाती ऑंखें ,

खुशी में भी ऑंसू छलका जाती ऑंखें,

कभी आकर्षण से पूर्ण रहती ये ऑंखें।


अनेक मनोभावों को दर्शाती हुई ऑंखें।

सचमुच,बहुत कुछ ही बोलती ये ऑंखें।


कभी जोश, जज़्बा, जुनून भरी ऑंखें,

त्याग,समर्पण की भाषा बोलती ऑंखें,

मस्तिष्क की एकाग्रता दिखाती ऑंखें,

दुनिया के सारे ग़मों से दूर होती ऑंखें,

कभी समंदर के जल सी शांत,ये ऑंखें,

नदिया की धार सी इठलाती भी, ऑंखें।


अनेक मनोभावों को दर्शाती हुई ऑंखें।

सचमुच,बहुत कुछ ही बोलती ये ऑंखें।।


© अजित कुमार "कर्ण" ✍️

~ किशनगंज ( बिहार )

तिथि :- 20 / 03 / 2022.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

सरस्वती वंदना ।। अशोक जौहरी

 



.।।।।सरस्वति वंदना।।

परात परमेश्वर परम ऐश्वर्यशालिनी। 

परम पिता उर  निवासिनी।

माँ सरस्वती मनभावनी।

देवत्व की है मुझे  कामना।

नही है और कुछ चाहना।

आत्मिक चेतना के शैल शिखर पर बैठा दो।भौतिक,दैविक

अध्यात्मिक  ताप मिटा दो।

झर झर सरस  स्निग्ध 

धारा।

दिव्य सोम अन्तः बहा दो।

ज्ञान,भक्ति की करें उपासना।

भरे सोम  रस कलश प्यारा।

जीवन हो जगमग न्यारा।

मन,बुद्धि,प्राण शुद्ध हो।

विमल चित्त मे परिलक्षित हो।

कर्म,वचन शिव हो।

माँ उद्दात  भाव  से भर दो।

उठे मन मे सात्विक उद्रेक। 

भागे राग द्वेष अनेक। 

माँ सात्विक मन कर दो।

छिडा मन मे वत्रासुर संग्राम। 

इन्द्र विजय  कर दो।

अन्तः वाह्य रिपु मिटा दो।

मुझे अजातशत्रु बना दो।

माँ मेरा अभिराम मिटा दो।

प्रेयस मार्ग  से हो विरक्ति।

श्रेयस  मे हो प्रवृति।

सुक्रत कर्मो मे लगा दो।

मै सत्यधारी बनू।

मुझे सन्मार्गी बना दो।

हे ज्ञानेश्वरी,योगेश्वरी

 मै जिज्ञासु ज्ञान पिपासु  

हे धीवसु ज्ञानी बना दो।

मेरा हो वर्चस्व। 

सुगन्ध कर्मो की फैले सर्वत्र।

सब विधाओं मे पारंगत

मुझे बना दो।

 ।बनू मै वेदाभ्यासी अनुरागी।

निश दिन रसना मेरी   रटे ऋचाऐ तेरी।

कंठ बसो माँ शारदे।

मीठे बोल सिखा दो।

जब जब बोलू मुख से।

अमृत की बौछार  लगे।

मन मेरा तृप्त  करे 

औरन का कल्याण करे।

शरीर मेरा आत्मा रथी।

अनुपम भेंट प्रभु की।

सुगठित,सुसज्जित सुदृढ। 

छिद्र रहित  हो दोनो चक्र 

यम नियम की धुरा लगा दो।

स्वधर्म हो परिलक्षित। 

सत्य अहिंसा से हो दीक्षित। 

 सुगम जीवन च्रक चला दो।

माँ मुझे धर्मावतारी बना दो।

दिव्य गुणो की चुनरी

सुशोभित भवत्व रत्न जडित

ओढ़नी मुझे उठा दो।

आयु,प्राण उत्तम संतान। 

यश,बल,धवल कीर्ति 

करो प्रदान। 

आरूढ रथ पर दिव्य  रथी।

रथ की हो तीव्र गति।

आत्मा मेरी हो सारथी।

प्रेरित  करती ज्ञानेश्वरी।

कुशल संचालिका अधिष्ठाता।

जीवन सुमंगल प्रदाता।

 मुझे मिले परम गति।

माँ मुझे द्यौलोक ले चलो। 

        अशोक  जौहरी












 





।।

शनिवार, 29 जनवरी 2022

सौंदर्य के उपासक । अशोक जौहरी


 

सौन्दर्य के उपासक

सौन्दर्य  की करो उपासना।

आत्म-प्रेम से मिले परमात्मा।

हर जीव में सुन्दर आत्मा।

हर पल जिसे सुहाये,

वही सुखी आत्मा।

सुन्दर, सलोनी,सुरभित अवनी।

सौन्दर्य  की है दिव्य विभूति।

सब प्रभु रचना तुम्हारी।

हर पल आये सुखद अनुभूति।

मन सुन्दर, तन सुन्दर 

देखें सुन्दर, सुने सुन्दर 

करें सुन्दर बखान। 

सबसे ऊपर भावना महान।

हे धियावसु सत्य ज्ञान, कर्म से हम बने महान। 

दया,ममता,करूणा ,

सेवा,दान उपकार

निश-दिन परमार्थ करें।

बने मानवता की प्रति-मूति,धर्मार्थ  

दिन-रात करें।

सब मन हरे 

समिर्पित भाव करे।

 आत्म-मिलन की अभीप्सा में  प्रभु ध्यान  धरे।

सप्त ऋषि पास तुम्हारे।

देते सौन्दर्य दान।

अमूल्य  भेट प्रभु की

इसे तू जान। 

मत कर कभी तू अभिमान।

हों सर्वांग सुन्दर 

बने हम महान। 

मागते प्रभु से वरदान। 

        अनुचर

अशोक  जौहरी

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

देश भक्ति कविता ✍️अशोक जौहरी


 ।।।।।ललकार।।। 

उठो वीरों क्यों तुम सो रहे?

विघटित ,भ्रमित,दिशाहीन हो रहे।

क्षण क्षण होते अपमानित फिरंगियों से।

हतोत्साहित नपुंसक कापुरूष बने रहे।

विदेशी रौंदते तुम्हे पैरों तले।

अमानुशीय यातनाऐ तुम झेल रहे।

पल पल लुटती लाज वतन की।

क्यों तुम मूक दर्शक  बने रहे?

वेडियों में जकडी माँ भारती।

क्रन्दन करती बिलखती मुक्ति को तडपती 

तुम्हे पुकार रही।

क्यों निर्लज  बने तुम देख रहे?

क्यों खून  तुम्हारा नही खौल रहा?

उठो वीरों शक्ति पुंज हो तुम।

संगठित हो दुश्मन पर टूट पडो।

जन जन को जाग्रत करो।

 स्वराज्य है जन्म  सिद्ध अधिकार हमारा।

क्रान्तिकारियों का है शब्द घोष

क्या तुम भूल रहे?

उठाओ शस्त्र चलो रणभूमि पर।

आजादी का बिगुल बजा दो।

सिंहनाद से कापे धरती।

मुख से फूटे ज्वाला मुखी।

मतवाले चले शीश चढाने।

रूको न तुम वीर कभी।

खून से धरती लाल करो।

माँ का सपना साकार करो।

उद्दात  भावना अजादी की बनी रहे।

सन सैतालीस मे हम आजाद  हुए।

आजादी मिली नही भीख  मे न मनुहार  से।

आजादी मिली कुर्बानी से।

सहेजो इसे जी जान  से।

चीन  पाक घुसपैठ  कर रहे।

नित नये षड्यंत्र रच रहे।

असामाजिक तत्व फिर पनप रहे।

मुस्लिम  लव जेहाद छेड रहे।

जबरन कन्याओं को मुस्लिम बना।

माँ बेटी नही सुरक्षित  समाज  में।

हिन्दुओं जागो देश बचाओ।

संगठित हो राष्ट्रीय  एकता जगाओ।

आपसी वैमनस्य  भुलाओ।

संघे शक्ति का नारा लगाओ।

गद्दारों कै भार भगाओ।

राष्ट्र वादी बनो हिन्दुत्व जगाओ।

देश पशप्रेमी बनो

जन हित मे कार्य  करो।

अखंड भारत  की नीव रखो।

पटेल का स्वप्न साकार  करो 

वसुधैव कुटुम्बुकं का भाव जगाओ। 

जय जननी जय भारत। 



     अशोक जौहरी।

19033 ATS Adv  Indrapuram  gzb.

Ph 8595116629

अशोक जौहरी


 जीवन की





जीवन की मधुमिता,

सुनो देव वाणी सन्तों की।

 कर्ण मधूमितहो जाए। 

माधुरी करती क्रीडा देह में।

चित्त मधुमित हो जाए। 

सहजता,विमलता,नमता

आए जीवन में।

इन्द्रियाँ देव बन जाए। 

प्रेम रस बहे नेत्रों से,

सब मंत्रमुग्ध हो जाऐं।

मधु की बहे वाग्धारा,

अरि मित्र बन जाए। 

बनो मधुमान जीवन में।

दृष्टि मधुर हो जाए। 

मन, वचन, कर्म शुद्ध हो जाए। 

सद्गुणों को ग्रहण करो,

दुर्गुण दूर हो जाऐं।

मधुमास के आगमनमें,

लावण्य सिक्त सलिल धरती करती मधुपान।

हरियाली बिखरती सर्वत्र।,

पत्ता पत्ता होता मधुमान 

रंग बिरंगे फूल खिलते।

सुवासित होते वन उपवन।

विहग गाते सुमधुर गीत।

कल कल बहता नीर।

छेडे मधुर संगीत।

मन्द मन्द चले समीर।

अनिद्य  रूपसी वसुन्दरा।

        अशोक जौहरी