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रविवार, 31 मई 2020

!! है तुमसे जन्मों का नाता !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! है तुमसे जन्मों का नाता !!

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।
  जरा सुन लो मेरे हमदम
  धड़कन किया ये कहती है ।।

  पल पल ये दिल समझाता
  है तुमसे जन्मों का नाता ।
  तुम समझो या न समझो
  ये आँखे तुम्हारी समझती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  है कशिश तुम्हारी निगाहो में
  दिल गिरफ्तार तेरी पनाहों में ।
  हुआ असर "बटोही" पर इनका
  जो ये निगाहे सजदा करती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  गीतकार -
  निशान्त झा "बटोही"

गुरुवार, 21 मई 2020

जी ना पायेंगी प्रीत की मारी ।। गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! कहा गया वो कृष्ण मुरारी !!



पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।
तोड़के बन्धन जन्मों का
कहा गया वो कृष्ण मुरारी ।।

ऐसा निरमोही बना कन्हैया
झट से झटक गया वो बईया ।
जाकर कहदो निष्ठुर से कोई
जी ना पायेंगी प्रीत की मारी ।।

पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।।

वो ही मेरा प्राण आधार
मेरी  साँसों  का  संचार ।
राधा अधूरी बिन कान्हा
बता दो जाके तृष्णा सारी ।।

पनघट सुना उपवन सुना
है सुनी कदम्ब की डारी ।।

गीतकार -
निशान्त झा "बटोही"

रविवार, 17 मई 2020

बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में

   

बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में
  दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।
आँखों मे रुके रहते है अश्क क्योकि
    मुस्कानों का मुखोटा लगाये रहता हूँ ।।

समझ गया अब दस्तूर ये जमाने का
  है ही काम इनका सब्र आजमाने का ।
 दिलो में नफरत रख खैरियत पूछते है
    बनकर हमदर्द खुशियों को फूंकते है ।।

जानकर सब पागल में बना रहता हूँ
  जलने वालो से भी सलाम रखता हूँ ।
बन ना जाऊ तमाशा कहि बाजार में
   दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।।

कहाँ खो गयी इस भीड़ में इंसानियत
   ढूँढता हूँ तो नज़र आती है हैवानियत ।
नही शिकवा मुझे कुछ इस जमाने से
    अपने तो पता चलते ही आजमाने से ।।

 "बटोही" यही इल्तजा बार बार करता हूँ
  मत भटक हर सीतम को समझता हूँ ।
  बन  ना जाऊ  तमाशा कहि बाजार में
    दिल का दर्द दिल मे छुपाये रहता हूँ ।।

  रचनाकार -
  निशान्त झा "बटोही"

बुधवार, 13 मई 2020

!! कौआ पहिर लेने अछि पाग !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! कौआ  पहिर   लेने  अछि  पाग !!

   वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
   बना  रहल छथि  अपन  भाग ।
   हंसक    माथे     अछि     मुरेठा
   कौआ  पहिर   लेने  अछि  पाग
   
   वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
   बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।

   मठोमाठ   बनल  मिथिला  के
   ओ बनबैत छथि, आनक भाग ।
   अप्पन  कीर्ति  अइ  बड़  सुन्नर
   आनक   कीर्ति   पटुआ   साग 
    
    वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
    बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।
   
    प्रपञची  बनि   गेल  संचालक
    अलापि रहल , लक्ष्मी के राग ।
    विद्यापति बनि गेलथि खेलौना
    खेला रहल अछि कुटिले काग 
   
    वाह रे मिथिला , वाह रौ मैथिल
    बना  रहल छथि  अपन  भाग ।।

    गीतकार-
    निशान्त झा "बटोही"

सोमवार, 11 मई 2020

कोरोना के संकट काल में जहाँ एक तरफ तो सरकार, अन्य संगठनों, व्यक्तियों द्वारा निःशुल्क वितरित किये जाने वाले राशन को कुछ लोग आवश्यकता से अधिक लेकर रखने का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजस्थान के जालौर और सिरोही जिलों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों ने यह कहकर वह राशन नहीं लिया कि मुफ्त में नहीं चाहिए।उन महान विभूतियों के चरणों में समर्पित मेरी यह कविता आपके सामने है--
आज त्रस्त समस्त भूमंडल, कोरोना की घातों से,
निर्जन से क्यों डगर-नगर सब,दिवस पूछता रातों से।
रोज़गार व्यापार ध्वस्त सब,तंगी है बाज़ारों में,
मानवता की सेवा के हित, होड़ लगी सरकारों में।
नायक के पग पर पग रखकर, सेना चलती वीरों की,
न्यूनाधिक सहयोग सभी का, आहुति है अमीरों की।
एक तरफ तो मारामारी, राशन लेने वालों की,
मयखानों में पंक्ति बद्ध हो,भीड़ लगाने वालों की।
और दूसरी ओर प्रशासन, देने दर पर खड़ा रहा,
बिना श्रम किये नहीं चाहिए, निर्धन निर्भय अड़ा रहा।
भूखे बच्चे रहे बिलखते, माँ का बहलाना देखो,
मर जाएँ पर मुफ्त न लेंगे,दिल का दहलाना देखो।
वन में तृण आहार बनाकर, आन निभाने वाले हैं,
हम अनुयायी हैं राणा के,जौहर के व्रत पाले हैं।
धन्य धरा यह राजस्थानी,भूमि उन प्रणवीरों की,
आओ भाल सजाएँ इसको,जननी है रणधीरों की।
        जगवीर शर्मा
 कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ.प्र.
मोबा. 9354498927

रविवार, 10 मई 2020

!! है तुमसे जन्मों का नाता !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

 !! है तुमसे जन्मों का नाता !!
   


  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।
  जरा सुन लो मेरे हमदम
  धड़कन किया ये कहती है ।।

  पल पल ये दिल समझाता
  है तुमसे जन्मों का नाता ।
  तुम समझो या न समझो
  ये आँखे तुम्हारी समझती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  है कशिश तुम्हारी निगाहो में
  दिल गिरफ्तार तेरी पनाहों में ।
  हुआ असर "बटोही" पर इनका
  जो ये निगाहे सजदा करती है ।।

  तुम्हे  देखा तो जाना ये
  साँसे कियु ये चलती है ।।

  गीतकार -
  निशान्त झा "बटोही"



शनिवार, 9 मई 2020

!!मातृ दिवस !! रचयिता - जगवीर शर्मा

                       !!मातृ दिवस !!
                        


पढ़ - लिख कर रोजगार की ललक ही तो,
तात भ्रात भगिनी से दूर कर देती है ।
कैसी रीत है भला ये पगले जमाने की जो ,
सुत को ही मात से अलग कर देती है ।
उस वक़्त मै भी नही जान पाया था कि धन,
पद की ये लालसा ही मति हर लेती है ।
माँ के पास था तो माँ का मोल नही जान पाया
माँ गयी तो लगा जैसे सूख गयी खेती है ।।

रचयिता -
जगवीर शर्मा




गुरुवार, 7 मई 2020

बम भोले मेरे नाथ खरगेश्वर !! गीतकार - निशान्त झा "बटोही"

!! बम भोले मेरे नाथ खरगेश्वर !!

  बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
  तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।
  त्रिनेत्र जब खोले त्रिलोकी
  हिले धरा और डोले अम्बर ।।

 डाल दृष्टि करुणा कृपा की
 कुसमौल को धन्य किया ।
 चरण कमल पद चिन्हों से
 ये धरा को पावन स्वर्ग किया ।।

 जगदव्यापी त्रिलोकेश दिगम्बर
 बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
 तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।।

जो भी आया दर पर भोले
 बिन मांगे सब कुछ पाया है ।
 करो निहाल हे कृपा सिन्धु
 "बटोही" जग से ठुकराया है ।।

 शितिकण्ठ शिवाप्रिय गंगाधर
 बम भोले मेरे नाथ खर्गेश्वर
 तन भष्म रमा ओढ़े बाघम्बर ।।

गीतकार -
निशान्त झा "बटोही"

बुधवार, 6 मई 2020

हम देश हिन्दुस्तान को दुल्हन बनायेंगे ।। रचनाकार - श्री बद्रीनाथ राय जी

           !! चाँदनी शरमयेगी ऐसा सजायेंगे !!
                 


   हम देश हिन्दुस्तान को दुल्हन बनायेंगे ।
   चाँदनी शरमयेगी ऐसा सजायेंगे ।।
   घर - घर मे फरिस्ता यहाँ हर लोग देवता ।
   रग - रग में भरे हों सभी में राष्ट्र एकता ।।
   आँसू न बहे दुध की दरिया बहायेंगे 
   चाँदनी शरमयेगी..............

   सीमा हो सुरक्षित न हों सैनिक की सहादत
   मंदिर नही मस्जिद नही हो राष्ट्र इबादत
   ऐसी नई तकनीकि हम इजाद करेंगे
   चाँदनी शरमयेगी..............

   भूखा नही नंगा कोई तकदीर का मारा
    हर हाथ हो सक्षम नही लाचार बेचारा
    सुख शांति शौर्य प्रेम का दीपक जलायेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    फल श्रेष्ठ सभी हो ऐसा उपवन हो हमारा
    जन्नत से भी सुन्दर हो प्यारा देश हमारा
    ज्ञानी - गुणी निस्वार्थ को नायक बनायेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    तुफान से टकराने की क्षमता हो हमारी
    भगवान के भरोसे न फसले हो हमारी
    मौसम की गुलामी से हम आजाद करेंगे
    चाँदनी शरमयेगी..............

    सैनिक श्रमिक कृषक का हम सम्मान करेंगे
    निर्भय हो योगी - यति यहाँ ध्यान करेंगे
    अमृत का कलश शौर्य से हम प्राप्त करेंगे
    राष्ट्र के रक्षक सदा ही पान करेंगे ।।
    चाँदनी शरमयेगी..............

    रचनाकार -
    श्री बद्रीनाथ राय
    ग्राम पोस्ट - करमौली
    जिला - मधुबनी बिहार
    फोन नo - 6205190859 / 9717815472

रविवार, 3 मई 2020

!! हर साँस तड़प रही है !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! हर साँस तड़प रही है !!

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।
 छाया कैसा विरह का पहरा
 मेरी हर साँस तड़प रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 बुझ गये खुशियों के दिये

 गमे उल्फत सुलग रही है ।
 लुटकर करार मेरे दिल का
 मेरे अफसाने सुन रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 मेरे अश्को की दरिया में

 नाव उनकी चल रही है ।
 बनकर वो इतनी निष्ठुर
"सुशील बटोही" पे हस रही है ।।

 तेरी यादों में मेरी अँखिया

 बिन मौसम बरस रही है ।।

 गीतकार-

 निशान्त झा "बटोही"

दर्द बढ़ता हैं तो लिख लेता हूँ मैं !! रचनाकार - निशान्त झा "बटोही"

!! भीग लेता हूँ मै !!
     


अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं
दर्द बढ़ता हैं तो लिख लेता हूँ मैं ।
छोड़ो क्या करोगे पोछकर आँसू
पड़ चुकी आदत पोछ लेता हूँ मैं ।।
                             छोड़ो क्या करोगे ........

ना दिखाओ कोई हमदर्दी मुझको
ये दर्द समझ लेंगे बेदर्दी मुझको ।
अपने गमो को सम्भाल लेता हूँ मैं
अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं ।।
                               छोड़ो क्या करोगे ........

 मेंरा उजड़ा जीवन वो बसायेगा
"बटोही" का जनाजा जो उठायेगा ।
 हँसी का मुखोटा डाल लेता हूँ मैं
 अश्क बहते हैं तो भीग लेता हूँ मैं ।।
                                  छोड़ो क्या करोगे ........

 रचना -
 निशान्त झा "बटोही"
            हास्य दिवस की शुभकामनाएं
                           'कुछ'
एक बार हम बाजार गए, दाढ़ी बनवानी थी
क्योंकि शाम को शादी में दावत खानी थी
हमने हज्जाम बबलू से पूछा कि क्या लोगे
बोला बस कुछ ही जो आप दोगे
दाढ़ी बनी तो तीस रुपये देकर हमने कहा लीजिए
बोला भाईसाहब हमें तो 'कुछ' ही दीजिए
खैर हमने भी मारा दाँव और उसे समझाया
कुछ तो घर पर है, ये कह उसे शाम को घर बुलाया
सारी योजना मनु की मम्मी को बतलायी
एक गिलास पानी मे थोड़ा दूध और एक मरी मख्खी डलवायी
शाम को बबलू आया और बोला कि हमें 'कुछ' दीजिए
हमने कहा ले जाना पहले दूध तो पीजिए
उसने जैसे ही घूँट भरी तो मख्खी ऊपर आयी
वह तपाक से बोला,इसमें तो कुछ है भाई
हमने कहा ठीक है 'कुछ' निकालो और ले जाओ
आगे से अपुन की दाढ़ी का यही रहेगा भाव
      जगवीर शर्मा
कवि एवं मंच संचालक
मोदीनगर, गाज़ियाबाद, उ. प्र.।
मोबा.8307746794,9354498927