!!मातृ दिवस !!
पढ़ - लिख कर रोजगार की ललक ही तो,
तात भ्रात भगिनी से दूर कर देती है ।
कैसी रीत है भला ये पगले जमाने की जो ,
सुत को ही मात से अलग कर देती है ।
उस वक़्त मै भी नही जान पाया था कि धन,
पद की ये लालसा ही मति हर लेती है ।
माँ के पास था तो माँ का मोल नही जान पाया
माँ गयी तो लगा जैसे सूख गयी खेती है ।।
रचयिता -
जगवीर शर्मा
जगवीर शर्मा
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