! हुई कलंकित फिर मानवता!!
राम तेरी भारत भूमि पर
फिर से सीता रोयी है ।
हुई कलंकित फिर मानवता
कब अवला चैन से सोयी है ।।
इज्जत का यहाँ कुछ मोल नही
हर पग पग पर हैवान बसा ।
रणचण्डिका बनकर जला सकू
हर माँ के दिल ये अरमान बसा ।।
जलाकर करो राख उस पाखंडी को
अश्रु बिंदुओं को अंगार बना ।
कब तक रहोगी सहती वेदना पीड़ा को
कंगन हाथो का कटार बना ।।
किया करेंगे हम ऐसे राज को लेकर
नारी अस्तिव जहाँ खेल बना ।
हवस की बनती यहाँ निवाला नारी
नारी जीवन है अभिशाप बना ।।
रचना -
निशान्त झा "बटोही"
राम तेरी भारत भूमि पर
फिर से सीता रोयी है ।
हुई कलंकित फिर मानवता
कब अवला चैन से सोयी है ।।
इज्जत का यहाँ कुछ मोल नही
हर पग पग पर हैवान बसा ।
रणचण्डिका बनकर जला सकू
हर माँ के दिल ये अरमान बसा ।।
जलाकर करो राख उस पाखंडी को
अश्रु बिंदुओं को अंगार बना ।
कब तक रहोगी सहती वेदना पीड़ा को
कंगन हाथो का कटार बना ।।
किया करेंगे हम ऐसे राज को लेकर
नारी अस्तिव जहाँ खेल बना ।
हवस की बनती यहाँ निवाला नारी
नारी जीवन है अभिशाप बना ।।
रचना -
निशान्त झा "बटोही"
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