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रविवार, 5 जुलाई 2020

! हुई कलंकित फिर मानवता!!

राम तेरी भारत भूमि पर
फिर से सीता रोयी है ।
हुई कलंकित फिर मानवता
कब अवला चैन से सोयी है ।।

इज्जत का यहाँ कुछ मोल नही
हर पग पग पर हैवान बसा ।
रणचण्डिका बनकर जला सकू 
हर माँ के दिल ये अरमान बसा ।।

जलाकर करो राख उस पाखंडी को
अश्रु बिंदुओं को अंगार बना ।
कब तक रहोगी सहती वेदना पीड़ा को
कंगन हाथो का कटार बना ।।

किया करेंगे हम ऐसे राज को लेकर
नारी अस्तिव जहाँ खेल बना ।
हवस की बनती यहाँ निवाला नारी
नारी जीवन है अभिशाप बना ।।

रचना - 
निशान्त झा "बटोही"

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