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सोमवार, 28 मार्च 2022

बोलती आँखे / अजीत कर्ण

 


👁️👁️ "बोलती ऑंखें" 👁️👁️

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ज़माने से जब इतना ऊब जाते हैं,

अधिकार तक छीन लिए जाते हैं ,

हर बात पर ही ताने दिए जाते हैं ,

दिल में दबी आग सुलग जाते हैं ,

अश्क नयनों से निकल न पाते हैं ,

जुबां पर शब्द ही नहीं आ पाते हैं।


तब, कई राज़ दिल के खोलती ऑंखें।

सामने आके बहुत कुछ बोलती ऑंखें।


आशिक़ी में जब कोई दिल हार जाते हैं,

पर कुछ भी कहने से वे हिचकिचाते हैं ,

दिल की बात दिल में ही दबे रह जाते हैं,

मोहब्ब्त का पैग़ाम पहुॅंचा नहीं पाते हैं ,

पर आरज़ू दिलों के सुलगते ही जाते हैं,

चाहतें बेताब होकर दरवाज़े तलाशते हैं।


तब, कई राज़ दिल के खोलती ऑंखे।

सामने आके बहुत कुछ बोलती ऑंखें।


तन्हाई में विरह वेदना दिखाती ऑंखें ,

प्रेम, विश्वास, स्नेह से छलकती ऑंखें,

अंगारे, क्रोध और दया बरसाती ऑंखें,

कभी हर्ष से रोमांचित हो जाती ऑंखें ,

खुशी में भी ऑंसू छलका जाती ऑंखें,

कभी आकर्षण से पूर्ण रहती ये ऑंखें।


अनेक मनोभावों को दर्शाती हुई ऑंखें।

सचमुच,बहुत कुछ ही बोलती ये ऑंखें।


कभी जोश, जज़्बा, जुनून भरी ऑंखें,

त्याग,समर्पण की भाषा बोलती ऑंखें,

मस्तिष्क की एकाग्रता दिखाती ऑंखें,

दुनिया के सारे ग़मों से दूर होती ऑंखें,

कभी समंदर के जल सी शांत,ये ऑंखें,

नदिया की धार सी इठलाती भी, ऑंखें।


अनेक मनोभावों को दर्शाती हुई ऑंखें।

सचमुच,बहुत कुछ ही बोलती ये ऑंखें।।


© अजित कुमार "कर्ण" ✍️

~ किशनगंज ( बिहार )

तिथि :- 20 / 03 / 2022.

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