SAHITYAA DHARA ME AAP KA SWAGAT HAI , APAKA YOGDAN SARAHNIY HAI , AAP APNI LEKH - AALEKH BHEJ SAKTE HAI AUR PATHAK GAN KO DE SAKATE HAI 9997313751,9634624383, मोदी नगर,ग़ज़िआबाद , मेरठ रोड उत्तर - प्रदेश E-mail: nishantkumarjha45@gmail.com

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कोरोना लॉक डाउन में विद्यालय के उद्गार
आ जाओ शिशु औ बाल तरुण
क्यों मुझे अकेला छोड़ दिया।
विपदा के समय अकेला हूँ
क्यों मुझसे नाता तोड़ दिया।।
चलना बोलना सीखते ही
माँ बाबा दूर किये तुमको।
शिक्षा संस्कार सिखाने को
रोतों को सौंप गये मुझको।
भगवन का बाल स्वरूप समझ
तुम से ये रिश्ता जोड़ लिया।।विपदा के......
नित आते फिर जाते थे तो
अगले दिवस की चाह तो थी।
मुझको लगता था तुम सबको
तनिक मेरी परवाह तो थी।
आँखों के तारे थे मेरे
अब एकदम क्यों मुख मोड़ लिया।।विपदा के......
माली काका भैयन मैया
मेरी सुध लेना भूल गए।
आचार्य प्रधानाचार्य जी व
दीदी भी मुझसे दूर गए।
मेरे कमरे आँगन बगिया
सबने मुस्काना छोड़ दिया।।विपदा के.....
मुझको लगा कुछ बात तो है
मेरे संग कुछ घात तो है।
फिर मुझको एकदम भान हुआ
बड़ा कोई संताप तो है।
सपने में राम-सिया बोले
कि चीन कोरोना फोड़ दिया।।विपदा के....
ऐ मेरे प्यारों बात सुनो
मैं तुम पर जान लुटाता हूँ।
सूने आँगन औ झूलों में 
आभास तुम्हारा पाता हूँ।
तुम स्वस्थ रहो और मस्त रहो
लो मैंने रोना छोड़ दिया।।
                    जगवीर शर्मा
             कवि एवं मंच संचालक
             मोदीनगर, गाज़ियाबाद।
            मोबा.8307746794
                   9354498927

रविवार, 22 मार्च 2020

मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता... रचना - आशीष कुमार जी ।।




आशीष कुमार की कविता
......................
मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता

मुझे बोलना नहीं आता
मुझे लिखना नहीं आता
लेकिन अगर मैं लिख पाता
तो लिखता एक कविता
हिन्दुस्तान के मुसलमान के बारे में

छोटी लकीर था
 कहते हैं कबीर था
उसकी तस्बीह में सौ दाने थे
इसके क्या माने थे ? 
दोहों में साखी था
हाथों पे राखी था
गले में ताबीज था 
बहुत ही नाचीज था



सुर में गाता था
सूरमा लगाता था
अलीगढ़ का ताला था
अमन का रखवाला था
पंचरवाला था
गोश्त काटता था
दोस्त बांटता था 
यार अबे ...कहता था
अलिफ बे... पढ़ता था 
कितना अजीब था
कि ....उसमें तहजीब था

वो भी कितना ?
इतना कि
अदब को अदब सीखनी होती है तो वो लखनऊ चली आती है
और 
 नफरत को नफरत सीखनी होती है तो वो गुजरात चली जाती है

सच को सच की तरह कहा जाए तो
 संविधान की प्रस्तावना लिखने वालों में उनका नाम नहीं है
फिर भी न जाने क्यों
उन्होंने अपने हिस्से की धूप मांगी
तो संविधान की प्रस्तावना को सर से लगाया


उन्होंने ट्रेनें नहीं रोकी
जंतर मंतर ... रामलीला मैदान नहीं गए 
वो जहां रहते थे, सहते थे, बसते थे 
उसी बस्ती में, उन्होंने उठा लिया तिरंगा 






मुझे बोलना नहीं आता लिखना नहीं आता
लेकिन  अगर मैं लिख पाता 
तो आपको बताता 
कि आटे सने हाथों में
 मेंहदी लगे हाथों में 
ओट्स वाले हाथों में
 नोट्स वाले हाथों में 
जब तिरंगा आता है 
तो कितने शान से लहराता है
वो दृश्य बड़ा पावन था
आंखों में सावन था
दो हजार-बीस में 1857 था

बुरके वाली औरतें... हिजाब वाली औरतें
जींस वाली लड़कियां, फ्रॉक वाली बच्चियां
वो दादियां,वो नानियां 
 वो सब बागी थीं 
और उनके 
कौम वाले गीत से
रोम-रोम संगीत से
राग बन गया
.वो जगह.... बाग बन गया  


तवे पर रोटियां
घरों में बेटियां 
छोड़ कर 
वो बनाने निकलीं देश 
उनका दर्द कितनों ने जाना क्या मालूम 
लेकिन अगर मैं लिख पाता तो लिखता 
घर ही नहीं देश भी बनता है औरतों से




 दर्द बड़ा गहरा था
 रोने पे पहरा था 
आंसू निकलते थे 
जज्बात निगलते थे
सोने सा मन 
क्षण-क्षण
कण-कण  
जन-गण-मन

मुझे बोलना नहीं आता, मुझे लिखना नहीं आता
लेकिन अगर मैं लिख पाता तो रूह से निकलने वाली उस कराह के बारे में लिखता
 जो तब निकलती है जब लाखों लोगों की इज्जत पांच सौ पर नीलाम होती है
अगर सच बोलना इतना बड़ा गुनाह न होता 
तो मैं जरूर कहता 




कि 
ये महज विरोध नहीं विद्रोह था 
आजादी के बाद 
सत्य और अहिंसा के साथ  पहला आंदोलन
प्रस्तावना के साथ पहला आंदोलन
तिरंगे के साथ पहला आंदोलन
महिलाओं की अगुवाई में पहला आंदोलन 

आपने इतिहास को किताबों में पढ़ा होगा
अब आप इतिहास के बनने के गवाह हैं 
1857 से दो हजार 20 तक
ईस्ट इंडिया कंपनी से वेस्ट इंडिया कंपनी तक 
वो खड़ी , वो अड़ी, वो लड़ीं वो लड़ती रहीं
किसके लिए 
संविधान के लिए
लोकतंत्र में लोक के सम्मान के लिए
उन्होंने 
मान दिया
हमारे संविधान को
हमारे तिरंगे को
हमारी औरतों को

बापू के इस देश में 
पहली बार एक आंदोलन चला 
और मैं लिख पाता तो आपको बताता 
कि इस आंदोलन में था
अहिंसा और सत्याग्रह का आकर्षण 
एक विराट सम्मोहन 
कुछ इस तरह जैसे
अगर बापू होते, और वो आंदोलन करते तो ये था उस जैसा आंदोलन 

मुझे बोलना नहीं आता
लिखना नहीं आता
लेकिन वो दर्द जो हिन्दुस्तान के मुसलमान का है
वो हिन्दुस्तान में हर इनसान का है

अगर मैं कह पाता तो बताता 

कि तुम्हारा ये दर्द
मुझे जीने नहीं देता
तुम्हारा ये दर्द
मुझे मरने नहीं देता
तुम्हारा ये दर्द मेरा भी दर्द है
क्योंकि ये हममें से एक का है
इसलिए ये हर एक का है
और जो एक का नहीं, वो शेष का नहीं
जो एक का नहीं, वो देश का नहीं

अगर मैं लिख पाता तो लिखता 
देशभक्ति अगर तुम्हारा कोई नाम होता तो शायद मुसलमान होता
मैं शर्मिंदा हूं
बहुत शर्मिंदा 
कि मुझे बोलना नहीं आता , मुझे लिखना नहीं आता 
.......................................................

गुरुवार, 19 मार्च 2020

बुधवार, 18 मार्च 2020

जिंदगी जीना आसान नहीं. || रचनाकार - आशुतोष "कन्हैया"



जिंदगी जीना आसान नहीं
अब औऱ कोई प्रमाण नहीं
लड़ते-झगड़ते वो मंजर देखा
अपनों को भोंकते ख़ंजर देखा

कहीं ज़मीन तो कही ज़मीर की
कहीं उल्फ़त तो कहीं तमीज़ की
हर शख़्स खड़ा चौराहे पर
तलवार की धार पर
इस फ़िराक में क़ी वार कर
वहशियों को तैयार देखा।

अतातयीयो की फ़ौज में
सत्ता के मौज में
दरिन्दों के दौर में
वो कसमसाती जिंदगी
चीत्कारती,कराहती
मरता आदमी 
हैवानियत की हद तक
वो बिखरता संसार देखा।

     कन्हैया झा आशुतोष

सोमवार, 9 मार्च 2020

गीत (चाची की होली)

होली में मारे कुलाची।
कमाल कर दीनो रे चाची।।
सब सखियन के संग में आयी।
रंग लगाए और देत है गारी।
दे दे ठुमका नाची।।
कमाल कर दीनो रे चाची...
होली का हुडदंग भयो है।
चाचा हमरे भंग पियो है।
चाची ने पी लई काची।।
कमाल कर दीनो रे चाची....
चाचा बोले मार पिचकारी।
झट सै वा नै सिर मैं मारी।
गुल्लड़ ह्वै गयो साँची।।
कमाल कर दीनो रे चाची...
                  जगवीर शर्मा
             कवि एवं मंच संचालक
                    मोदीनगर
            मोबा.8307746794
                    9354498927

!! मन मे उमंग भरे !! रचनाकार - जगवीर शर्मा

!! मन मे उमंग भरे !!




जीवन मे रंग भरे मन मे उमंग भरे
पुष्प की तरह सदा यूँ ही मुस्कुराइए।

रुके नहीं कोई काम हरि को करो प्रणाम,

भाग्य वाली तस्वीर कर्म से सजाइये।

कभी न अहं आये दुखी पे रहम आये,

मान पूर्वजों का हमेशा तुम बढाइये।

शुभकामनाएँ होली की हैं आपको जी,

प्यार से गुलाल लाल गाल पे लगाइये।।

             जगवीर शर्मा

             कवि एवं मंच संचालक

                 मोदीनगर

              मो.9354498927

                

                

बुधवार, 4 मार्च 2020

होली गीत

                                      होली गीत                                          आयी फागुन मस्त बहार
उड़े रंगों की फुहार
साजन रंग डारो
मोहे रंग डारो
सखियाँ ताने मार रहीं हैं
कैसे मैं समझाऊँ।
आ जाओगे संग मेरे तो
सबको मैं बतलाऊँ।
गाऊँ मैं भी गीत मल्हार
गूंजे पायल की झंकार
साजन रंग डारो।।
बाल युवा और वृद्ध आज
सब पस्त हुए होली में।
सजनी आगे साजन देखो
मस्त हुए होली में।
अब तो आ जाओ भरतार
अँखियाँ राहें रहीं निहार
साजन रंग डारो।।
लाल गुलाल मलो गालन पै
भर लाओ पिचकारी।
ऐसो रंग डालना साजन
भीजि जाए जो सारी।
आओ भूल जाएं तकरार
कर लें इक दूजे से प्यार
साजन रंग डारो।।
                      जगवीर शर्मा
               कवि एवं मंच संचालक
                    मोदीनगर
               मो.8307746794