SAHITYAA DHARA ME AAP KA SWAGAT HAI , APAKA YOGDAN SARAHNIY HAI , AAP APNI LEKH - AALEKH BHEJ SAKTE HAI AUR PATHAK GAN KO DE SAKATE HAI 9997313751,9634624383, मोदी नगर,ग़ज़िआबाद , मेरठ रोड उत्तर - प्रदेश E-mail: nishantkumarjha45@gmail.com

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

युवक संघ पुस्तकालय नागदह

सेवा मे,
        आदरणीय लेखक बंधु / प्रकाशक महोदय।
             अहाँ सबकेँ जानकारी देबय चाहैत छी जे युवक संघ पुस्तकालय , नागदह, मधुबनी बिहार (मिथिला)
बड्ड पुरान पुस्तकालय अछि। मुदा किछु समय सँ एकर देख रेख सही तरीका सँ नहि भ सकलै, मुदा एहि मध्य आब युवा वर्ग जागरूक भ चुकल छथि। आब एकर जीर्णोद्धार भ चुकल अछि तैं अपने समस्त लेखक/ प्रकाशक लोककनिसँ आग्रह जे एकोगोट प्रति अपन वा अन्य पुस्तक एहि पुस्तकालय मे जरूर पठाबी , 
अपने सभक
युवक संघ पुस्तकालय नागदह निमित्त..
संजय झा 'नागदह'
व्हाट्सएप्प : 8010218022
पता-
युवक संघ पुस्तकालय
ग्राम पोस्ट नागदह
जिला - मधुबनी
बिहार (मिथिला)
पिन - 847222
नोट : भ' सकए त एहि पोस्ट के किछु लोक तक भेजबा मे मदति करू।

रविवार, 12 जुलाई 2020

हे रुद्र मेरे ।। गीतकार - श्री सतीश अर्पित जी

   


क्यूं रूष्ट हो तुम हे रुद्र मेरे,
अब त्यागो रूप विकराला को...
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

धरती सारी यह त्रस्त हुई ...
चहूं ओर है पसरा भय अपार ,  नहीं सूझे कोई राह कहीं , 
मृत्यु ने मचाया हाहाकार , 
है कौन कहो शिव तुम जैसा , जो पान करे इस हाला को ...
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ..
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

माना के हमसे भूल हुई ,
फिर भी हम तुम्हरे बालक हैं ,
अब करो क्षमा हे नीलकंठ ,
एक आप हमारे पालक हैं ।
हम दीन हीन हैं चरण पड़े ...
नित जपें नाम की माला को ....
हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....

एक आस तुम्हीं इस सृष्टि के ,
तुम कारण अमृत वृष्टि के ....
है कौन के जिसकी शरण  गहूं...
तुम ही हो लक्ष्य,हर दृष्टि के...
"अर्पित" करता विनती हरपल 
अपने शंभू मतवाला को ....

हे भोलेनाथ अब क्रोध तजो ...
प्रभु शांत करो निज ज्वाला को .....
©️✍️ सतीश अर्पित
तारा म्यूजिक
12 जुलाई 2020

रविवार, 5 जुलाई 2020

! हुई कलंकित फिर मानवता!!

राम तेरी भारत भूमि पर
फिर से सीता रोयी है ।
हुई कलंकित फिर मानवता
कब अवला चैन से सोयी है ।।

इज्जत का यहाँ कुछ मोल नही
हर पग पग पर हैवान बसा ।
रणचण्डिका बनकर जला सकू 
हर माँ के दिल ये अरमान बसा ।।

जलाकर करो राख उस पाखंडी को
अश्रु बिंदुओं को अंगार बना ।
कब तक रहोगी सहती वेदना पीड़ा को
कंगन हाथो का कटार बना ।।

किया करेंगे हम ऐसे राज को लेकर
नारी अस्तिव जहाँ खेल बना ।
हवस की बनती यहाँ निवाला नारी
नारी जीवन है अभिशाप बना ।।

रचना - 
निशान्त झा "बटोही"