SAHITYAA DHARA ME AAP KA SWAGAT HAI , APAKA YOGDAN SARAHNIY HAI , AAP APNI LEKH - AALEKH BHEJ SAKTE HAI AUR PATHAK GAN KO DE SAKATE HAI 9997313751,9634624383, मोदी नगर,ग़ज़िआबाद , मेरठ रोड उत्तर - प्रदेश E-mail: nishantkumarjha45@gmail.com

बुधवार, 13 जनवरी 2021


 सुच्चा मैथिल मिथिला के जगाउ यौ मैथिल |स

पूर्वा पछवा पवनसँ मिथिला के बचाव यौ मैथिल ||

दुष्टक नजरि नञि लागए मैथिल, मिथिला  माटि मनोहर के |

धरती गगनकेँ पावन राखी, पुष्पित करु सरोवरके||

गीत विकाशक लगनी सोहर गाउ यौ मैथिल |

सुच्चा़.........

कृषियज्ञ के हवनकुण्ड मे मंत्र हो गहुम गीता के |

धानवाण पढि रक्षा करियौ मिथिला परम पुनीता के  ||

माटि हमर बेसी सबसँ उपजाऊ यौ मैथिल ।

लोरीक कें हम नमन करै छी,सलहेसक मर्यादा कें 

चण्डी चननिकें शत् शत् विनती,विनती जीवन सादाकें।

घर घर ज्ञानक वैभव दीप जराउ यौ मैथिल।

सुच्चा मैथिल मिथिला..........

मंगलवार, 12 जनवरी 2021


 हम छी सुच्चा मैथिल भैया,

मैथिलकें संतान यौ।

हमरे पौरुष पर मिथिलामे ,

होय छै शाझ-विहान यौ ।

देखु आइ उपेक्षित हमहीं,

हम छी एखनो बारल ।

माँ मैथिली सेवक हमहीं

एखनोधरि छी टारल।।

करु हमर पंचैती भैया 

हम जनकक संतान यौ।।

हम कृषक छी पान मखानक,

हमहीं मरुआ धानक। 

हमरे मे सलहेशक पौरुष

वंशज महा महानक।।

गोत्र हमर विद्वानक हमरो

सहब कतेक अपमान यौ 

हमरे पौरूष पर.....।।

कवि कोकिलकें लेखनि हमरे,

लोरीक के लाठी सेहो।

बण्ठा वीरक वल हमरामे

दीनासन हमरे देहो।।

हमहीं दीना हमहीं लोरीक,

सब गुणकेर हम खान यौ।

हमरे पौरुष पर.......।

बहिन चनैनक धरती मिथिला,

पोखरि कमल फुलाएल।

सलहेशक फुलबारी सींचल,

स्वर्ग उतरि छल आएल।।

सीता सतवर्ती के हमरो,

भेटल अछि वरदान यौ।।

हमरे पौरुष..

गीता पर चिन्तन अछि हमरे,

कृषि कर्म नगरे नगरे।

गहुम गीता धान वाणकेर,

पाठ करि डगरे डगरे।।

व्रम्ह भेला याचक मिथिलामे

पाहुन छथि श्रीराम यौ।।

हमरे पौरुष............

पूर्वज हमर केलनि हरवाही,

उपजल बेटी सीता।

बढ़ल मान मिथिलाकेर तखनहिं

पावन परम पुनीता।

हमरे पूर्वज के भेटल छनि,

शिव शंभुक वरदान यौ।

हमरे पौरूष.............................।


 मिथिला जेकर अपन छै, 

ओकरे मे हम साटब |

रक्ष भाव जे रखने मन मे,

पैर ओकर हम काटब||


ज्ञानक गरिमा हम जनै छी, 

ताँइ आइ  मैथिल कहबै छी|

हमरे मिथिला हमरे धरती ,

हम उपज के काटब||

मिथिला......

बण्ठा भाइसँ लेब विचार हम, 

आऔर लोरीकसँ लाठी लेब|

दीनाक देल इजोतक दर्शन, 

हम समाज मे बाँटब ||

रक्ष भाव. ......

ज्ञान सुधामयी निर्मल  मिथिला,

भव्य दिव्य अछि भाल |

जाति धर्म के भेद के भेदब,

आओर खाइध के पाटब||

मिथिला....... 

मिथिला के जे बाँटि रहल अछि, 

देखियौ हमरे डाँटि रहल अछि|

हेतै विकाश मिथिला धरतीकेर, 

बैसि विचार के  बाँटब |

रक्ष भाव.....

मिथिला के हम क्रान्तिदूत छी, 

घेरने रोग बिमारी, 

एहि अनहार  मे चाही हमरा, 

वैचारिक चिनगारी|

गली गली अनहार घर मे,चन्द्र सूर्य के साटब

मिथिला.......

जे हमरा बुरिबक बुझइए, 

बुझियौ अपने पैर कटइए|

आब चलाकी मुदा नञि चलतै,

अंकुशसँ हम आँकब||

मिथिला........ 

सुख शान्ति समृद्धि मनोहर, 

हम समाज मे आनब|

बहुत ठकेलहुँ फेर ठकाएब नञि, 

आब आगि नञि पाकब |

मिथिला..... 

हमरा मिथिला राज नञि  चाही, 

भेटत  तँ विधिवत् हम लेब |

हम्मर हिस्सा हमरा चाही,

नञि सुनब हम डाँटब ||

मिथिला...... 

वैचारिक कोमल किसलयसँ, 

हम वैचारिक आगि जराएब|

बहिन  चनैनिकेर खोंइछि भरब हम, 

सलहेशक पौरुष हम पाएब||

मिथिला...... ......


 कृषक अन्न के दाता भूखे,

राजमहल खु़शियाली।  

साम-सोम की सरिता में,

होती रंगीन दिवाली।  

कृषकों के हीं खुँन बहाकर,

लाल रूमाल किये जाते।

देने की कुछ बात न होती।

कर में खुँन लिये जाते।।

सुकुमारी सत्ता सोई है,

सजी सिंहासन सोने की।

श्रवनशक्ति खो बैठी है,

आवाज न सुनती रोने की।।

जो है देश का भाग विधाता,

वही आज भूखा रहता।

लक्ष्मी की तकदीर जो लिखते,

उनका तन नंगा रहता।।

प्रतिनीधि के हाथ अंगुठी,

पुछो जड़े नगीनो से।

संसद् की दीवार रंगी है,

कृषकों के हीं खूँनो से।।

विलासिता के द्युत फलक पर,

गोटी फेंकी जाती है।

कृषक चिता पर राजनीति की,

रोटी सेंकी जाती है।।

कृषि क्षेत्र में पैर न रखते,

कृषक श्रेष्ठ कहलाते हैं।

सरकारी अनुदानों को भी,

गीद्ध झपटकर खाते हैं।।

राजनीति में ठुमके नखरे,

अभिनय के सिर ताज यहाँ।

कृषक चिता पर किला बनाकर,

जीते हैं रसराज यहाँ।।

रक्त पिपासिनी सत्ता की,

मखमली गाल की लाली।

कृषकों को तंगहाल बनाती,

इनकी बिन्दिया बाली।।


नोट-प्रस्तुत कविता हमारे लोकप्रिये प्रधान मंत्री मोदी जी पर नहीं लागु होता है।


 वह कौन है?जो मौन है।

मार्तण्ड के प्रखर ज्योति मे ,

तन मन को करता होम है।

देते नही जिसे शीतलता,

हिम -हवा और सोम है।

जिसका नीरव क्रन्दन मात्र,

सुन रहा एक व्योम है।

समाज का संचालक भी,

खींचता मात्र उसी का लगाम,

खूँन बहाता संचालक भी

देता नहीं लहु का दाम।

दिनभर खेतों में जलता,

घर में होता है कुहराम।

अाँसू पीकर सोते बच्चे ,

दिन-रात और शुबह-शाम।

कर्ज अतीथि की सेवा में ,

मरता जीता रहता है।

क्रन्दन-कुन्ज में मासुमों की

बहती आँसू सरिता है।।

नोट -विद्वान एवं विदुषि मार्मिक मार्गदर्शन करें।


 जेठक दुपहरिया पछबा बसात,

डाहि रहल विरहिन के शिशु नवजात।

शैशव छै दग्धल पियासल छै प्राण,

विपदाकें मारल पर भूखक लगाम।।

पत्थरके हिया लए मालिक गमार,

फुटहाके जलखइ पर माथा सवार।

कृषकक छै कण्ठ सुखल मालिक मुख पान,

समाज व्यवस्था पंचक छै वेढ़ब विधान।।

गरीबी के खम्भामे बान्हल अछि प्राण,

भारत कहाबैत अछि फुसिञे महान।।

के देशके आजाद कए केलनि अहन भूल,

डाारि डूबल अछि दूधक गंगा प्यासल अछि एखनो मूल।।

सरस्वतीके गुदड़ी लटकल लक्षी के तन पटोर,

एकसरि राधा रास लीन छथि विरहिन नयना नोर।।


 हम छी सुच्चा मैथिल भैया,

मैथिलकें संतान यौ।

हमरे पौरुष पर मिथिलामे ,

होय छै शाझ-विहान यौ ।

देखु आइ उपेक्षित हमहीं,

हम छी एखनो बारल ।

माँ मैथिली सेवक हमहीं

एखनोधरि छी टारल।।

करु हमर पंचैती भैया 

हम जनकक संतान यौ।।

हम कृषक छी पान मखानक,

हमहीं मरुआ धानक। 

हमरे मे सलहेशक पौरुष

वंशज महा महानक।।

गोत्र हमर विद्वानक हमरो

सहब कतेक अपमान यौ 

हमरे पौरूष पर.....।।

कवि कोकिलकें लेखनि हमरे,

लोरीक के लाठी सेहो।

बण्ठा वीरक वल हमरामे

दीनासन हमरे देहो।।

हमहीं दीना हमहीं लोरीक,

सब गुणकेर हम खान यौ।

हमरे पौरुष पर.......।

बहिन चनैनक धरती मिथिला,

पोखरि कमल फुलाएल।

सलहेशक फुलबारी सींचल,

स्वर्ग उतरि छल आएल।।

सीता सतवर्ती के हमरो,

भेटल अछि वरदान यौ।।

हमरे पौरुष..

गीता पर चिन्तन अछि हमरे,

कृषि कर्म नगरे नगरे।

गहुम गीता धान वाणकेर,

पाठ करि डगरे डगरे।।

व्रम्ह भेला याचक मिथिलामे

पाहुन छथि श्रीराम यौ।।

हमरे पौरुष............

पूर्वज हमर केलनि हरवाही,

उपजल बेटी सीता।

बढ़ल मान मिथिलाकेर तखनहिं

पावन परम पुनीता।

हमरे पूर्वज के भेटल छनि,

शिव शंभुक वरदान यौ।

हमरे पौरूष.............................।


 रिस्वत आज रिवाज बनी है,

नई संस्कृति भ्रस्टाचार।

राजनीति के शब्दावलि में,

रही नहीं अब शिष्टाचार।।

रक्तों से लाल रुमाल भरा,

जीवन मधुमय खुशहाल हरा।

इन्साफ के मुरत साफ नहीं,

वस्त्रों में इनके दाग भरा।।

भाषा शैली भाषण बोली,

में दिखते नापाक इरादे।

सत्ता की चोली से चिपके,

करते हैं नित झुठे वादे।।

धर्म-कर्म और मर्म भिन्न है,

नैतिकता से दुर बहुत है।

सुरा-सुन्दरी के सौदागर,

आदत से मजबुर बहुत है।।

दल की दलदल में फँसकर हम,

मरते नहीं कराह रहे हैं।

नव-निर्माण हो भरत खण्ड का,

ऐसा कब से चाह रहे हैं।।

विकसित नहीं विकाशशील है,

पलने में सोती सरकार ।

किसे बुरा या भला कहूँ मैं,

सत्ता को शत-शत धिक्कार।।


 कौवाकेर पंचैती बैसल,

पहीरि पाग अछि निर्णय भेल।

जनसेवाकें काज करि किछु,

सत्ता लेल शतरंजक खेल।।

विष्ठा पर अधिकार हमर अछि,

विष्ठा पौष्टिक च्यवनप्राश।

लड़ि लड़ाक'खेलहुँ सब दिन

गिद्ध नीति पर एखनो आश।।

लोक कहाँ अछि बाँचल बुरिबक

जे सुनि लितए बात हमर।

बुझलक हमर चलाकी सबटा,

सावधान अछि गाँव नगर।।

एक मात्र मार्ग अछि बाँचल,

भाषा पर किछु काज करी।

हम चलाक छिहें पहिनहिसँ,

मिथिला राजक नाम धरी।।

हम कौवा मर्मज्ञ ज्ञानकेर,

मुखिया मात्र रहब हमहीं।

ज्ञानक मात्र एक ठिकेदार हम 

बाँकी सभ कनहा कनही।।

गुदा मार्गसँ बाजि रहल छी,

गुदा मार्ग अछि देवक देल।

झुठ साँच किछुओ हम बाजब,

करब चलाकी सत्ता लेल।।

हम किनको मैथल नञि मानब,

मैथिल मात्र हमर खनदान।

बाँचल आब प्रपंचेटा अछ,

पापी पेटक करी निदान।।

हम छी दागल साँढ़ प्रतिष्ठित,

ढ़ेकरब अछि भाषाकेर मानक।

हम जे लिखलहुँ सत्य शुद्ध अछि

अछि अशुद्ध लिखल जे आनक।।

हम मैथिल छी महा मनस्वी,

मिथिला पर हमरे अधिकार।

हमर दुष्टता जग जाहिर अछि,

मिथिलाकेर हमहीं रखबार।।

घर्मक आरि मे बैसि खेलहुँ हम ,

मलपुआ घृत आऔर मलाइ।

दुरूपयोग केलहुँ क्षमताकेर,

सत्ता छलि हमर भौजाइ।।

धर्मक नेता मिथिला नेता,

सभ दलकेर हम नेता छी।

बुरिबक लोक बात नञि बुझए,

हम ज्ञानक विक्रेता छी।।

हम अनाथ छी,जगन्नाथ नञि,

रूसली हमर अपन भौजाइ।

एकबेरि पुनि चालि चलब हम,

मिथिला राजक देब दोहाइ।।