माँ तेरी बचपन की याद आती है वो लोरी
जो बदल गयी ज़िन्दगी की कशमकश में ।
ढूंढता हु फिर से वही बेफिक्र नादानियो को
जो छूट गयी बेचैन ज़िन्दगी की कशमकश में ।।
कहा खो गयी ,कहा वो तेरे पल्लू की चवन्नी
जिनको पाकर पुलकित पँख उड़ते थे गगन में ।
अब कमाकर ढेरो नोट और दौलत को भी
रहता हु कियूँ मायूस , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।
दिल करता है लौट आयु फिर से अपने उसी
चहकते खिलखिलाते रूठते नादान बचपन मे ।
माँ थक गया हूं बहुत भागते भागते इस भीड़ मै
पर मिला नही सुकून , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।
नवाजती थी दुआओं से दिन रात मुझको माँ तू
अब तेरा हाल पूछने को भी नही फुर्सत मुझको ।
खुद भूखी रहकर पहला निवाला मुझको खिलाया
अब मर गयी भूख मेरी , ज़िन्दगी की कशमकश में ।।
माँ तेरी बचपन की याद आती है वो लोरी
जो बदल गयी ज़िन्दगी की कशमकश में ।
ढूंढता हु फिर से वही बेफिक्र नादानियो को
जो छूट गयी बेचैन ज़िन्दगी की कशमकश में ।।
✍️✍️निशान्त झा "बटोही"✍️✍️
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें