हम छी सुच्चा मैथिल भैया,
मैथिलकें संतान यौ।
हमरे पौरुष पर मिथिलामे ,
होय छै शाझ-विहान यौ ।
देखु आइ उपेक्षित हमहीं,
हम छी एखनो बारल ।
माँ मैथिली सेवक हमहीं
एखनोधरि छी टारल।।
करु हमर पंचैती भैया
हम जनकक संतान यौ।।
हम कृषक छी पान मखानक,
हमहीं मरुआ धानक।
हमरे मे सलहेशक पौरुष
वंशज महा महानक।।
गोत्र हमर विद्वानक हमरो
सहब कतेक अपमान यौ
हमरे पौरूष पर.....।।
कवि कोकिलकें लेखनि हमरे,
लोरीक के लाठी सेहो।
बण्ठा वीरक वल हमरामे
दीनासन हमरे देहो।।
हमहीं दीना हमहीं लोरीक,
सब गुणकेर हम खान यौ।
हमरे पौरुष पर.......।
बहिन चनैनक धरती मिथिला,
पोखरि कमल फुलाएल।
सलहेशक फुलबारी सींचल,
स्वर्ग उतरि छल आएल।।
सीता सतवर्ती के हमरो,
भेटल अछि वरदान यौ।।
हमरे पौरुष..
गीता पर चिन्तन अछि हमरे,
कृषि कर्म नगरे नगरे।
गहुम गीता धान वाणकेर,
पाठ करि डगरे डगरे।।
व्रम्ह भेला याचक मिथिलामे
पाहुन छथि श्रीराम यौ।।
हमरे पौरुष............
पूर्वज हमर केलनि हरवाही,
उपजल बेटी सीता।
बढ़ल मान मिथिलाकेर तखनहिं
पावन परम पुनीता।
हमरे पूर्वज के भेटल छनि,
शिव शंभुक वरदान यौ।
हमरे पौरूष.............................।
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