कौवाकेर पंचैती बैसल,
पहीरि पाग अछि निर्णय भेल।
जनसेवाकें काज करि किछु,
सत्ता लेल शतरंजक खेल।।
विष्ठा पर अधिकार हमर अछि,
विष्ठा पौष्टिक च्यवनप्राश।
लड़ि लड़ाक'खेलहुँ सब दिन
गिद्ध नीति पर एखनो आश।।
लोक कहाँ अछि बाँचल बुरिबक
जे सुनि लितए बात हमर।
बुझलक हमर चलाकी सबटा,
सावधान अछि गाँव नगर।।
एक मात्र मार्ग अछि बाँचल,
भाषा पर किछु काज करी।
हम चलाक छिहें पहिनहिसँ,
मिथिला राजक नाम धरी।।
हम कौवा मर्मज्ञ ज्ञानकेर,
मुखिया मात्र रहब हमहीं।
ज्ञानक मात्र एक ठिकेदार हम
बाँकी सभ कनहा कनही।।
गुदा मार्गसँ बाजि रहल छी,
गुदा मार्ग अछि देवक देल।
झुठ साँच किछुओ हम बाजब,
करब चलाकी सत्ता लेल।।
हम किनको मैथल नञि मानब,
मैथिल मात्र हमर खनदान।
बाँचल आब प्रपंचेटा अछ,
पापी पेटक करी निदान।।
हम छी दागल साँढ़ प्रतिष्ठित,
ढ़ेकरब अछि भाषाकेर मानक।
हम जे लिखलहुँ सत्य शुद्ध अछि
अछि अशुद्ध लिखल जे आनक।।
हम मैथिल छी महा मनस्वी,
मिथिला पर हमरे अधिकार।
हमर दुष्टता जग जाहिर अछि,
मिथिलाकेर हमहीं रखबार।।
घर्मक आरि मे बैसि खेलहुँ हम ,
मलपुआ घृत आऔर मलाइ।
दुरूपयोग केलहुँ क्षमताकेर,
सत्ता छलि हमर भौजाइ।।
धर्मक नेता मिथिला नेता,
सभ दलकेर हम नेता छी।
बुरिबक लोक बात नञि बुझए,
हम ज्ञानक विक्रेता छी।।
हम अनाथ छी,जगन्नाथ नञि,
रूसली हमर अपन भौजाइ।
एकबेरि पुनि चालि चलब हम,
मिथिला राजक देब दोहाइ।।
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