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बुधवार, 22 दिसंबर 2021

मिथिला डूबल अन्हरिया मे ना।।


 बहिन यै एकबेरि पुनि अबियौ ,जनक नगरिया मे।

मिथिला डूबल अन्हरिया मे ना।।

बढ़लै दूष्ट दहेजक लोभी,सत्ता कपटी कामी-क्रोधी।

सब केओ लिप्त भेल अछि,गणिका आऔर छुतहरिया मे।।

मिथिला डूबल...........

सगरो चोर भ्रष्ट बटमार,होय छै रौदी बाढ़ि सुखाड़।

सौंसे काँटे पसरल मिथिला नगर डगरिया मे।।

मिथिला.................

कृषकक पैर गड़ल अछि कील,खोलियौ कल करखाना मील।

होय छै नित्य पलायन पेटक लेल शहरिया मे।।

मिथिला ...............

भरल अछि क्रोध विरोध प्रतिशोध,दियौ दिव्य ज्ञानकेर बोध।

मिथिला फँसलै जाक' उर्मि बीच लहरिया मे।।

मिथिला..............

नञि अछि मिथिला मे रोजगार,कुण्ठित कलुषित दूषित विचार।

 सूतल कालनेमि सिंहासन उँच्च अटरिया मे।।

मिथिला..................

सगरो पुष्पित अछि विष वेल,रावण सिंहासन अछि भेल।

सत्ता शयन करइए स्वर्ण सोम खड़खड़िया मे।।

मिथिला......................


रचनाकार - बद्रीनाथ राय

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