मैं जी रहा हु गुमनाम , ये मेरी तक़दीर बन गया , जिस दिन मिला मुझे प्रभु , मैं एक नामी तस्वीर बन गया , हो प्रभु का हाथ सर पर , तो कोई मेरी पहचान मिटा नहीं सकता , जिस दिन से सोचा ग़रीबों के लिए कुछ करना, मुझे कोई राह से भटका नहीं सकता , अपने लिए तो सभी जीते है , पर में जीता हु दुखी लोगों के लिए , मुझे कोई रोक के तो दिखाए ,मुझे मेरी मंज़िल को पाने में कोई हिला नहीं सकता , कर्म तो सभी करते है हर दिन , पर में कर्मों का विधाता नहीं, रही आख़री साँस भी , तो यही कहूँगा मुझे जीना आता ही नहीं, पता नहीं मेरी इस जगत में मेरी कोई पहचान है, पर जीते जी सबकी मदद करूँगा , यही मेरा ईमान है 🙏🙏🙏
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