जेठक दुपहरिया पछबा बसात,
डाहि रहल विरहिन के शिशु नवजात।
शैशव छै दग्धल पियासल छै प्राण,
विपदाकें मारल पर भूखक लगाम।।
पत्थरके हिया लए मालिक गमार,
फुटहाके जलखइ पर माथा सवार।
कृषकक छै कण्ठ सुखल मालिक मुख पान,
समाज व्यवस्था पंचक छै वेढ़ब विधान।।
गरीबी के खम्भामे बान्हल अछि प्राण,
भारत कहाबैत अछि फुसिञे महान।।
के देशके आजाद कए केलनि अहन भूल,
डाारि डूबल अछि दूधक गंगा प्यासल अछि एखनो मूल।।
सरस्वतीके गुदड़ी लटकल लक्षी के तन पटोर,
एकसरि राधा रास लीन छथि विरहिन नयना नोर।।
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