जीवन की
जीवन की मधुमिता,
सुनो देव वाणी सन्तों की।
कर्ण मधूमितहो जाए।
माधुरी करती क्रीडा देह में।
चित्त मधुमित हो जाए।
सहजता,विमलता,नमता
आए जीवन में।
इन्द्रियाँ देव बन जाए।
प्रेम रस बहे नेत्रों से,
सब मंत्रमुग्ध हो जाऐं।
मधु की बहे वाग्धारा,
अरि मित्र बन जाए।
बनो मधुमान जीवन में।
दृष्टि मधुर हो जाए।
मन, वचन, कर्म शुद्ध हो जाए।
सद्गुणों को ग्रहण करो,
दुर्गुण दूर हो जाऐं।
मधुमास के आगमनमें,
लावण्य सिक्त सलिल धरती करती मधुपान।
हरियाली बिखरती सर्वत्र।,
पत्ता पत्ता होता मधुमान
रंग बिरंगे फूल खिलते।
सुवासित होते वन उपवन।
विहग गाते सुमधुर गीत।
कल कल बहता नीर।
छेडे मधुर संगीत।
मन्द मन्द चले समीर।
अनिद्य रूपसी वसुन्दरा।
अशोक जौहरी
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