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सोमवार, 25 अप्रैल 2022

प्रेरणा ।।। अशोक जौहरी


 प्रेरणा 

उद्विग्नता मन मे थी भरी।

वह थी मेरी काल रात्रि। 

उंच्छृखल भावना थी बह रही।

मन मे थी पीडा बडी।

मानव उत्पीड़न से थी झुलसी।

माँ सरस्वती का किया आह्वान।

क्षणो मे हुआ पीडा अवसान।

माँ ने मुझे धीरज  दिया।

प्रेरक प्रसंग  अन्तः भरा।

लिखने को हुआ व्याकुल बडा।

आत्म चिन्तन जब किया।

कुंठा नैराष्य  अवसाद  से जग भरा।

अन्धविश्वास,अज्ञानता उपेक्षा का प्रसार बडा।

विषम परिस्थित से था

जग जकडा।

बहती मानस मे कलुषित 

धारा।

युग पुरुष दयानन्द  का उद्गम हुआ। 

युग दृष्टा तुष्टा काल दर्षी।

जीवन उनका पारदर्शी। अविजित दयानन्द स्वामी।

दयानन्द  स्वामी विश्व विभूति।

सानिध्य  उनका दिव्य अनुभूति। 

उनका स्मरण मेरा अनुकरण। 

दैदिप्त  होता मेरा अन्तःकरण। 

प्रेरणा उनकी मेरी काव्य  कृति।

जन जन करती जाग्रति।

लाभान्वित होती माँ भारती। 

दयानन्द  गर तुम ना होते।

खाते हम अन्धेरे मे गोते।

कूप मंडूक होते हम पडे।

हम है सदा तुम्हारे आभारी।

तुम हो मेरे भाग्य  प्रभारी।

तुममे लगे मति हमारी।

जब तक रहे गंगा मे पानी।

अमर रहे वीर सेनानी।

      अशोक  जौहरी



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