!! अल्हड़ था मैं !!
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मेरे कामयाबी से कोई जलता रहा"
और मै सरफिरा !
यूँ ही बेबाक़ आगे बढ़ता रहा,
ना तुफानों का परवाह किया !
ना ही किसी रास्तों में परे काँटों का,
बस यूँ ही बेबाक आगे बढ़ता रहा !
अल्हड़ था मैं,
गाँव की मिट्टी में जो पला बढ़ा था !
बहुत ही कम उम्र मे,
हर मुश्किलों से जो लड़ा था !
ना जानें कैसे-कैसे दर्दों को सहा था,
कभी-कभी तो मैं,
आवारा भी कहा गया था !
मैं तब भी हिम्मत नहीं हारा था,
हाँ थोड़ा सा लड़खड़ा जरूर गया था !
पर गिरा नहीं था,
बस अपनें ही जिद्द पे अड़ा था !
ना समंदर की लहरों का डर,
और ना ही उन लहरों में डुबने का भय था !
बस मन में ठाने मंजिल तक पहुंचनें का जो लक्ष्य था,
उसी लक्ष्य को पानें की चाह में"
मदमस्त ब्यार की तरह आगे बढ़ता जा रहा था !
क्या कहूँ बहुत ही कठिन डगर था,
पर जैसा भी था। ये सफ़र बहुत ही हसीन था !
© ✍..मिथिलेश राय
धमौरा-05-02-2020
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