!! विश्वाश आज भी है !!
आपकी आभा से जगमगाता
ये गुलशन आज भी है ।
आपकी निष्ठा कर्तव्य से रोशन
ये गुलज़ार आज भी है ।।
आपकी आभा से जगमगाता
ये गुलशन आज भी है ।
बढाये थे परहित में जो कदम
ये पदचिन्ह आज भी है ।
हृदय समर्पित था जनहित में
ये लक्ष्य आज भी है ।।
आपकी आभा से जगमगाता
ये गुलशन आज भी है ।
सीखा गये परोपकार में जीना
ये हौसला आज भी है ।
ना हुआ ना होगा आपके जैसा
ये विश्वाश आज भी है ।।
आपकी आभा से जगमगाता
ये गुलशन आज भी है ।
रचना -
निशान्त झा "रमण"
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