तो दूर न तुम मुझसे जाओ।
चंचल चित को एक ठहर मिला,
तुम व्यर्थ न इसको फिर गति दो।
तेरा हृदय आकाश के सम,
वाणी मधुर बंशी की धुन।
जब चले मंद पवन जैसा,
मैं हारी हुई हूं अपना मन।
कैसे बिसरूं वह नगर-नगर,
धड़कन भी चलते ठहर-ठहर।
तुम धुन मेरे, मैं तान तेरी,
बजने दो इसको गान सही।
कविता झा
01-02-2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें